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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
सूत्र १३०. तए णं तव मेहा ! सरीरगंसि वेयणा पाउ भवित्था उज्जला विउला तिउला कक्खडा जाव ( पगाढा चंडा दुक्खा ) दुरहियासा, पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंती यावि विहरित्था ।
तए णं तुमं मेहा ! तं उज्जलं जाव ( विउलं कक्खडं पगाढं चंडं दुक्खं) दुरहियासं सत्तराइदियं वेयणं वेएसि; सवीसं वाससयं परमाउं पालइत्ता अट्टवसट्टदुहट्टे कालमास कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे भारहे वासे दाहिणडभरहे गंगाए महानदीए दाहिणे कूले विंझगिरिपायमूले एगेणं मत्तवर - गंधहत्थिणा एगाए गयवरकरेणूए कुच्छिसि गयकलभए
तणं सा गयकलभिया णवण्हं मासाणं वसंतमासम्मि तुमं पयाया ।
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सूत्र १३०. "मेघ ! फिर तुम्हारे शरीर में वेदना होने लगी । वह तुम्हारे सम्पूर्ण शरीर और मन में फैल गई थी और तुम्हें तनिक भी चैन नहीं था। उस कठिन दुस्सह पीड़ा तुम्हारे शरीर में पित्त - ज्वर और दाह उत्पन्न हो गया। तुम उस संतप्त करने वाली तीव्र वेदना को सात दिन तक भोगकर, एक सौ बीस वर्ष की आयु में, आर्त्तध्यानपूर्वक मृत्यु को प्राप्त हुए। इसके पश्चात् तुम्हारा अवतरण दक्षिणार्ध भरत में महानदी गंगा के दक्षिणी किनारे पर विन्ध्याचल के निकट एक मदोन्मत्त उत्तम गंधहस्ती से एक श्रेष्ठ हथिनी की कोख में हुआ। उस हथिनी ने नौ मास पूरे होने पर वसन्त ऋतु में तुम्हें जन्म दिया ।
130. “Megh! You suffered from intense pain. It spread throughout your body and mind and you had not even a moments respite. That intolerable agony caused fever and burning sensation in your body. You suffered that excruciating pain for seven days and died suffering at a mature age of one hundred and twenty years. From here you descended into the womb of a she-elephant made pregnant by a wild bull elephant of best breed living near the Vindhyachal mountain on the southern banks of the Ganges in the southern half of Bharat. After nine months, during the spring season, you were born.
यूथपतिरुप्रभ
सूत्र १३१. तए णं तुमं मेहा ! गब्भवासाओ विप्पमुक्के समाणे गयकलभए यावि होत्था, रत्तु-प्पलरत्तसूमालए जासुमणा-रत्तपारिजत्तय-लक्खारस-सरसकुंकुम-संझब्भरागवन्ने इट्ठे णिस्स जूहवइणो गणियायारकणेरु-कोत्थ- हत्थी अणेगहत्थिसयसंपरिवुडे रम्मेसु गिरिकाणणेसु सुहंसुहेणं विहरसि ।
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सूत्र १३१. “तुम एक नन्हें और सुकुमार हाथी के रूप में विकसित होने लगे। तुम्हारा रंग लाल कमल, जवा कुसुमादि समान लाल था और तुम अपने यूथपति के स्नेह भाजन
CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA
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