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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
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119. Accepting his request Shraman Bhagavan Mahavir initiated Megh Kumar into the order. Preaching the basic tenets he said, "Beloved of gods! An ascetic should move, stand, sit, sleep, eat, speak, and do other things according to the prescribed rules (and he stated the rules). He should observe the discipline taking all precautions, being alert, and avoiding lethargy so as to protect all living beings (Pran, Bhoot, Jiva, Sattva, etc.). There should be no negligence in this.” Megh Kumar listened to, absorbed, and accepted the preaching of Shraman Bhagavan Mahavir and commenced his practices of conduct and discipline accordingly. __ सूत्र १२०. जं दिवसं च णं मेहे कुमारे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, तस्स णं दिवसस्स पच्चावरण्हकालसमयंसि समणाणं निग्गंथाणं अहाराइणियाए सेज्जासंथारएसु विभज्जमाणेसु मेहकुमारस्स दारमूले सेज्जासंथारए जाए यावि होत्था।
तए णं समणा निग्गंथा पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्माणु- जोगचिंताए य उच्चारस्स य पासवणस्स य अइगच्छमाणा य निग्गच्छमाणा य अप्पेगइया मेहं कुमारं हत्थेहिं संघट्टति, एवं पाएहिं, सीसे पोट्टे कायंसि, अप्पेगइया ओलंडेन्ति, अप्पेगइया पोलंडेन्ति, अप्पेगइया पायरयरेणुगुंडियं करेन्ति। एवं महालियं च णं रयणिं मेहे कुमारे णो संचाएइ खणमवि अच्छि निमीलित्तए।
सूत्र १२०. सन्ध्या के समय श्रमणों के शय्या-स्थान का विभाजन उनके दीक्षा पर्याय के काल क्रमानुसार होने के कारण जिस दिन मेघकुमार ने दीक्षा ली उसी दिन से उनका शयन स्थान (सबके पश्चात्) द्वार के निकट निश्चित हुआ।
रात के पहले और अंतिम प्रहर में अनेक श्रमण वाचना, पृच्छना, परावर्तन, धर्म-चिन्तन, उच्चार (मल त्याग) या प्रस्रवण (मूत्रादि त्याग) के लिए आते-जाते रहे। सोये हुए मेघकुमार से उनमें से किसी श्रमण का हाथ छू गया, किसी का पैर उनके मस्तक से छू गया, कोई उन्हें लाँघ गया, किसी ने तो उन्हें दो-तीन बार लाँघा और किसी के पैरों की धमक से उड़ी धूल उन पर पड़ी। उस लम्बी रात में मेघकुमार क्षण भर को भी पलक नहीं झपका सके।
120. At bed-time the allotment of places to sleep was done according to the seniority of ascetics on the basis of the period of initiation. As such, Megh kumar was allotted the last place near the gate.
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CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA
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