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"Bhagavan! This world is being consumed by the fire of old age and death. In a situation when his house is on fire a rich merchant chooses the most valuable and least cumbersome object and rushes away. The thought at the back of his mind is that this valuable thing, saved from the fire, will be of immense use for his future benefits, happiness, power, and welfare. In exactly the same way the only thing I found valuable was my soul. This is my only cherished, lovely, adored, charming, and beloved thing. If I save it from being consumed by the fire of old age and death it will prove to be the instrument of terminating the cycle of rebirth.
"As such, it is my earnest desire that you yourself initiate me, order shaving of my head, instruct me about the essential duties, teach me the text and meaning of the canons, and preach me the basic tenets of religion that include the code of conduct, rules of alms collecting, humility and its benefits, Charan (the observance of vows etc.), Karan (rituals of maintaining purity), Yatra (practice of penance and discipline), and Matra (the proportion of things). "
सूत्र ११९. तए णं समणं भगवं महावीरे सयमेव पव्वावेइ, सयमेव आयार जाव धम्ममाइक्खइ–“एवं देवाणुप्पिया ! गंतव्वं चिट्ठियव्वं णिसीयव्वं तुयट्टियव्वं भुंजियव्वं भासियव्वं, एवं उट्ठाए उट्ठाय पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेहिं संजमेणं संजमियव्वं, अस्सिं चणं अट्ठे णो पमाएयव्वं ।"
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
तणं से मे कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं णिसम्म सम्मं पडिवज्जइ । तमाणाए तह गच्छइ, तह चिट्ठइ, जाव उट्ठाए उट्ठाय पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेहिं संजमइ ।
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सूत्र ११९. यह सुनकर भगवान महावीर ने मेघकुमार को स्वयं ही दीक्षा प्रदान की । स्वयं ही आचार आदि धर्म का प्ररूपण किया । वह इस प्रकार हैं- "हे देवानुप्रिय ! श्रमण को इस प्रकार ( नियमानुसार) चलना, खड़े होना, बैठना, सोना, आहार करना, बोलना आदि कर्म करने चाहिए और इस प्रकार सावधान और अप्रमत्त हो प्राण, भूत, जीव, सत्त्व आदि की रक्षा करके संयम का पालन करना चाहिए । इस सम्बन्ध में तनिक भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। " मेघकुमार ने भगवान से यह धर्मोपदेश सुनकर हृदय में धारण किया और सम्यक् रूप से अंगीकार किया । वह भगवान की आज्ञा के अनुरूप ही आचरण करके संयम की आराधना करने लगे।
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA
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