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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र |
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सूत्र ११७. तए णं से समणे भगवं महावीरे मेहस्स कुमारस्स अम्मापिऊहिं एवं वुत्ते P समाणे एयमहूँ सम्म पडिसुणेइ।
तए णं से मेहे कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ उत्तरपुरच्छिमे दिसिभागं अवक्कमइ। अवक्कमित्ता सयमेव आभरण-मल्लालंकारं ओमुयइ। ___तए णं से मेहकुमारस्स माया हंसलक्खणेणं पडसाडए णं आभरण-मल्लालंकारं पडिच्छइ। पडिच्छित्ता हार-वारिधार-सिंदुवार-छिन्नमुत्तावलिपगासाइं अंसूणि विणिम्मुयमाणी विणिम्मुयमाणी रोयमाणी रोयमाणी कंदमाणी कंदमाणी विलवमाणी विलवमाणी एवं वयासी___ "जइयव्वं जाया ! घडियव्वं जाया ! परक्कमियव्वं जाया ! अस्सि च णं अढे नो पमाएयव्यं। अम्हं पि णं एसेव मग्गे भवउ" त्ति कटु मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो समणं भगवं महावीरं वंदति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया।
सूत्र ११७. भगवान महावीर ने मेघकुमार के माता-पिता की यह बात सम्यक् रूप से स्वीकार की और तब मेघकुमार ने भगवान से उत्तर-पूर्व की दिशा में जाकर स्वयं ही अपने वस्त्राभूषण उतार दिये।
मेघकुमार की माता ने कोमल श्वेत वस्त्र में वे वस्त्राभूषण ग्रहण किये और विलाप करती हुई बोलीं-“हे पुत्र ! तुम यत्न करना, प्रयल करना और पराक्रम करना। साधना में प्रमाद मत करना। हमारी कामना है कि भविष्य में हमारे लिए भी यही मार्ग प्रशस्त हो।" यह कहकर मेघकुमार के माता-पिता ने भगवान को यथाविधि वन्दन किया और लौट गये।
117. Shraman Bhagavan Mahavir accepted this request whole heartedly. Megh Kumar then proceeded in the north-east direction and removed all his ornaments and dress.
Megh Kumar's mother collected all the cloths and ornaments in a soft piece of cloth and uttered in choked voice, “ Son! put in diligence, effort, and vigour into your practices and do not be lethargic. I wish that future may open the same path for us also." After this, Megh Kumar's parents bowed before Shraman Bhagavan Mahavir with all reverence and left.
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA
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