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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
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संवड्ढिए नोवलिप्पइ पंकरए णं, णोवलिप्पइ जलरए णं, एवामेव मेहे कुमारे कामेसु जाए भोगेसु संवुड्ढे, नोवलिप्पइ कामरए णं, नोवलिप्पइ भोगरए णं, एस णं देवाणुप्पिया ! संसार-भउव्विग्गे, भीए जम्मणजरमरणाणं, इच्छइ देवाणुप्पियाणं अंतिए मंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। अम्हे णं देवाणुप्पियाणं सिस्सभिक्खं दलयामो। पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सभिक्खं।
सूत्र ११६. मेघकुमार के माता-पिता उन्हें आगे करके श्रमण भगवान महावीर के निकट आए। भगवान की तीन बार प्रदक्षिणा, वन्दनादि करके बोले____ “हे देवानुप्रिय ! यह मेघकुमार हमारा इकलौता पुत्र है। यह हमें इष्ट-कांत आदि (पूर्व सम) है और हमारे प्राणों जैसा है, हमारे श्वास-निश्वास जैसा है। हमारे मन का आनन्द है। गूलर के फूल के समान इसका नाम सुनना भी दुर्लभ है तो देखने की क्या कहें ? जैसे विभिन्न प्रजाति के कमल कीचड़ में पैदा होते हैं और जल में विकसित होते हैं फिर भी कीचड़ के मैल और पानी की बूंद से लिप्त नहीं होते उसी तरह मेघकुमार वासना में उत्पन्न हुआ और भोग में विकसित हुआ है परन्तु काम-रज और भोग-रज से लिप्त नहीं हुआ है। हे देवानुप्रिय ! यह मेघकुमार संसार के भय से चिंतित हो गया है और जन्म-जरा-मरण से डर गया है। इसलिए यह मुंडित होकर गृह त्यागकर आपके पास आगार से अणगार बनना चाहता है। हम देवानुप्रिय को शिष्य-भिक्षा देना चाहते हैं अतः हे देवानुप्रिय आप शिष्य भिक्षा स्वीकार कीजिए।" । ___116. Keeping him in the lead, Megh Kumar's parents approached Shraman Bhagavan Mahavir and after due obeisance said ____ “Beloved of gods! This is Megh Kumar, our only and cherished, lovely, adored, charming, and beloved son. He is the inspiration of our life and purpose of our breathing. It is difficult to hear about a son like him, what to talk of seeing one that is as rare as a Gular flower. As a lotus sprouts in swamp and grows in water but still remains free from stain of mud or wetness, Megh kumar was born out of lust and grew amidst earthly pleasures but has still remained free from the mud of lust and wetness of indulgence in pleasures. Beloved of gods! Megh Kumar has become apprehensive of the cycles of rebirth and the sequence of birth-aging-death. As such, renouncing his home and shaving his head he wants to become Anagar (homeless ascetic) from Agar (house-holder) under your auspices. We want to effect a discipledonation and beseech you to accept the same."
DOS
CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA
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