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________________ (९६) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र १0१. तए णं तस्स मेहस्स रण्णो अम्मापियरो एवं वयासी-“भण जाया ! किं दलयामो ? किं पयच्छामो ? किं वा ते हियइच्छिए सामत्थे (मंते)?" । सूत्र १०१. इसके बाद माता-पिता बोले-“हे पुत्र ! हम तुम्हें क्या देवें ? तुम्हें किस प्रिय वस्तु की इच्छा है ? तुम्हारे मन में क्या इष्ट है ? कहो।" ____101. After this, the parents asked, “Son! What should we gift you? Which fond thing you wish to have? What is it that you desire? Tell us." संयमोपकरण की माँग सूत्र १०२. तए णं से मेहे राया अम्मापियरं एवं वयासी-“इच्छामि णं अम्मयाओ ! कुत्तियावणाओ रयहरणं पडिग्गहं च उवणेह, कासवयं च सद्दावेह।" सूत्र १०२. राजा मेघ ने कहा-“हे माता-पिता ! कुत्रिकापण (जिस दुकान में तीनों लोकों की सभी वस्तुएँ मिलती हों) से रजोहरण और पात्र (श्रमण के उपकरण) मँगवा दीजिये और साथ ही एक नाई को बुलवा दीजिए।" DEMAND FOR ASCETIC EQUIPMENT _____102. King Megh replied, “Parents! Please send someone to a departmental store and get me the ascetic's sweep and utensils and, also call a barber." सूत्र १०३. तए णं से सेणिए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ। सद्दावेत्ता एवं वयासी"गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सिरिघराओ तिन्नि सयसहस्साइं गहाय दोहिं सयसहस्सेहिं कुत्तियावणाओ रयहरणं पडिग्गहगं च उवणेह, सयसहस्सेणं कासवय सद्दावेह।" __तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सेणिए णं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठा सिरिघराओ तिन्नि सयसहस्साई गहाय कुत्तियावणाओ दोहिं सयसहस्सेहिं रयहरणं पडिग्गहं च उवणेन्ति, सयसहस्सेणं कासवयं सदावेन्ति। ___ सूत्र १०३. राजा श्रेणिक ने अपने सेवकों को बुलवाकर आज्ञा दी-“देवानुप्रियो ! खजाने से तीन लाख मोहरें ले लो। दो लाख मोहरों में कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र खरीदो और एक लाख मोहर देकर नाई को बुला लाओ।" सेवकों ने राजाज्ञा का पालन किया। HOO - / (96) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007650
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1996
Total Pages492
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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