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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
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सूत्र ९६. मेघकुमार ने उत्तर दिया-“हे माता-पिता ! आपका यह सब कथन ठीक है पर यह निर्ग्रन्थ-मार्ग दुर्बल शरीर वाले, कायर, कापुरुष आदि तथा इस लोक के विषय-सुख की अभिलाषा में लिप्त तथा परलोक के सुख की इच्छारहित सामान्य व्यक्ति के लिए ही दुष्कर है। धीर पुरुष के लिए नहीं। जिसका संकल्प दृढ़ हो उसके लिए यह दुष्कर नहीं है। अतः मैं आपकी आज्ञा ले दीक्षा लेना चाहता हूँ।"
96. Megh Kumar replied, “Parents! What you have said is correct but know that this path of asceticism is difficult only for a weakling, a coward, spineless and other such timorous persons and also for those who are deeply involved only with earthly desires and pleasures having no awareness for the happiness of the other world or the next life. But it is not at all difficult for the composed ones who have strong determination. As such, seeking your permission I wish to get initiated without any delay."
सूत्र ९७. तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो जाहे नो संचाइंति बहूहि विसयाणुलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य आघवणाहि य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विनवणाहाहि य आघवित्तए वा, पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विनवित्तए वा, ताहे अकामए चेव मेहं कुमारं एवं वयासी-"इच्छामो ताव जायाः ! एगदिवसमवि ते रायसिरिं पासित्तए।"
तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरमणुवत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ।
सूत्र ९७. जब मेघकुमार के माता-पिता उसे विषयों के अनुकूल तथा प्रतिकूल तरह-तरह के उपायों से मनाने में सफल नहीं हुए तो अनिच्छा से बोले-“हे पुत्र ! हम तुम्हें कम से कम एक दिन के लिए राज्य लक्ष्मी का भोग करते देखना चाहते हैं।"
मेघकुमार माता-पिता की इच्छा का आदर करते हुए मौन रहा।
97. When Megh Kumar's parents failed to dissuade him in spite of every possible effort, they unwillingly said, "Son! We wish to see you enjoy the kingdom and its wealth at least for one day."
In honour of this insignificant desire of his parents Megh Kumar remained silent to express his acceptance. राज्याभिषेक
सूत्र ९८. तए णं सेणिए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावइ, सद्दावित्ता एवं वयासी"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मेहस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेयं
CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA
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