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सूत्र ८७. तए णं सा धारिणी देवी ससंभमोवत्तियाए तुरियं कंचणभिंगारमुहविणिग्गय-सीयलजल- विमलधाराए परिसिंचमाणा निव्वावियगायलट्ठी उक्खेवणतालविंट-वीयणग-जणियवाएणं सफुसिएणं अंतेउरपरिजणेणं आसासिया समाणी मुत्तावलिसन्निगासपवडंत-अंसुधाराहिं सिंचमाणी पओहरे कलुणविमणदीना रोयमाणी कंदमाणी तिप्पमाणी सोयमाणी विलवमाणी मेहं कुमारं एवं वयासी
सूत्र ८७. अनिष्ट की आशंका से तत्काल उनके मुख पर सोने के कलश से शीतल जल की निर्मल धारा डाली गई जिससे उनके अंग शीतल हुए। अनेक प्रकार के पंखों से उन्हें जल-कण युक्त हवा की गई और अन्तःपुर के परिजनों ने उन्हें आश्वस्त किया। इससे उन्हें होश आया और वे रो पड़ीं। उनकी आँखों से मोती की लड़ियों की तरह आँसू बहने लगे और वस्त्र भींग गये। वे अनमनी, दीन और दयनीय हो गईं। शोक से संतप्त धारिणी देवी ने रोते-रोते मेघकुमार से कहा
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
87. Apprehensive of some disaster the attendants poured cold water on her face from a golden urn and she calmed down. Humid air was blown at her with water soaked fans and her relatives and staff members uttered words of encouragement to console her. She regained her consciousness and started crying. Tears dripped from her eyes like strings of pearls and wet her cloths. Her appearance became pitiable. Choked with anguish she said to Megh Kumar -
मेघकुमार का माता-पिता से संवाद
सूत्र ८८. तुमं सि णं जाया ! अम्हं एगे पुत्ते इट्ठे कंते पिए मणुन्ने मणामे थेज्जे सासिए सम्म बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीवियउस्सासए, हिययाणंदजणणे उंबरपुष्कं व दुल्लभे सवणयाए किमंग पुण पासणयाए ? णो खलु जाया ! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पओगं सहित्तए । तं भुंजाहि ताव जाया ! विपुले माणुस्सर कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो । तओ पच्छा अम्हेहिं कालगएहिं परिणयवए वड्डिय-कुलवंस-तंतु- कज्जम्मि निरावयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्ससि ।
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सूत्र ८८. " हे पुत्र ! तू हमारा एकमात्र पुत्र है, इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मनभावन है। तू हमारे धैर्य और शान्ति का आधार है। तू हमारा विश्वासपात्र और कार्यपालक होने से अच्छा ही नहीं बहुत अच्छा लगता है। तू हमारे लिए आभूषणों की पेटी के समान है, रत्न समान है। तू ही तो हमारे जीवन का आधार है और आनन्द का स्रोत है।
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JNÄTÄ DHARMA KATHANGA SUTRA
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