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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
( ८७ )
दुर्लभ गूलर के फूल की तरह तेरे जैसे पुत्र को देखना तो क्या तेरे विषय में सुन पाना भी कठिन है। हे पुत्र ! हमें तो क्षण भर के लिए भी तेरा वियोग सहन नहीं होगा। इसलिए हे पुत्र ! जब तक हम जीवित हैं तब तक तू सभी मानवोचित सुख और आनन्द का भोग कर। फिर जब हम काल गति को प्राप्त हों और तू अधेड़ हो जाये, कुल-वंश के विस्तार का कर्तव्य पूरा हो जाये और किसी सांसारिक कार्य की अपेक्षा न रहे तब तू श्रमण भगवान महावीर के पास यथाविधि प्रव्रज्या ग्रहण कर लेना।"
DIALOGUE WITH PARENTS
88. “Son! You are our only and cherished, lovely, adored, charming, and beloved son. You are the source of our peace and confidence. As you are faithful and obedient we consider you to be excellent, not just good. You are like a chest full of ornaments or gems for us. You are the hope of our life and source of our joy. It is difficult to hear about a son like you, what to talk of seeing one that is as rare as a Gular flower. Darling! We will not be able to tolerate separation from you even for a moment. As such, we implore you to enjoy the joys and pleasures of human life as long as we live. When we breathe our last and, you get middle aged, fulfill your duty of continuation of the clan, and no desire of any worldly activity is left you may go to Shraman Bhagavan Mahavir and get initiated following the prescribed procedure." __ सूत्र ८९. तए णं से मेहे कुमारे अम्मापिऊहिं एवं वुत्ते समाणे अम्मापियरं एवं वयासी-“तहेव णं तं अम्मयाओ ! जहेव णं तुम्हे ममं एवं वदह-तुमं सि णं जाया ! अम्हं एगे पुत्ते, तं चेव जाव निरावयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि-एवं खलु अम्मयाओ माणुस्सए भवे अधुवे अणियए असासए वसणसउवद्दवाभिभूते विजुलयाचंचले अणिच्चे जलबुब्बुयसमाणे कुसग्गजलबिन्दुसन्निभे संझब्भराग-सरिसे सुविणदंसणोवमे सडण-पडण-विद्धंसणधम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे से के णं जाणइ अम्मयाओ ! के पुव्विं गमणाए ? के पच्छा गमणाए ? तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुब्भेहिं अब्भणुनाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइत्तए।
सूत्र ८९. मेघकुमार ने उत्तर दिया-“हे माता-पिता ! आपने जो कुछ कहा वह ठीक है परन्तु यह मनुष्य भव अध्रुव है, अनियत है, अशाश्वत है, व्यसनों और उपद्रवों से अभिभूत है, विद्युत् के समान चंचल और अनित्य है, पानी के बुलबुले और घास की नोंक
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CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA
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