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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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सूत्र ७८. सेवक ने श्रमण भगवान महावीर के आने के समाचार जानकर मेघकुमार को बताया-“देवानुप्रिय ! नगरवासियों के एक दिशा में जाने का कारण कोई इन्द्रोत्सव आदि नहीं है। आज तो धर्म-तीर्थ की स्थापना करने वाले श्रमण भगवान महावीर यहाँ पधारे हैं और यथाविधि राजगृह नगर के गुणशील चैत्य में विहार कर रहे हैं।"
78. Finding about the arrival of Shraman Bhagavan Mahavir the attendant explained to the prince, “Beloved of gods! It is not because of some religious festival that the crowd is going in one particular direction. Today Shraman Bhagavan Mahavir, the founder of the religious ford, has arrived in the town and stayed in the Gunasheel temple.” __सूत्र ७९. तए णं से मेहे कंचुइज्जपुरिसस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हट्ठतुढे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेति, सदावित्ता एवं वयासी-“खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंट आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह।" तंह त्ति उवणेति।
सूत्र ७९. सेवक की यह बात सुनकर मेघकुमार प्रसन्न हुए और दासों को बुलवाकर कहा-“हे देवानुप्रियो ! जल्दी से चार घंटे वाले रथ में घोड़े जोतकर तैयार करो।" सेवकों ने तत्काल आज्ञा स्वीकार की और रथ तैयार करके उपस्थित किया।
79. Megh Kumar was pleased to get this information from the attendant. He called his staff and said, “Beloved of gods! Prepare a four horse chariot and bring it here immediately.” The servants executed the order without delay. भगवान महावीर के दर्शन व देशना __ सूत्र ८0. तए णं मेहे पहाए जाव. सव्वालंकारविभूसिए चाउग्घंटं आसरहं दुरूढे समाणे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भड-चडगर-विंद-परियालसंपरिवुडे रायगिहस्स नगरस्स मज्झमज्झेणं निग्गच्छति। निग्गच्छित्ता जेणामेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छति। उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स छत्तातिछत्तं पडागातिपडागं विज्जाहरचारणे जंभए य देवे ओवयमाणे उप्पयमाणे पासति। पासित्ता चाउग्घंटाओ आसरहाओ पच्चोरुहति। पच्चोरुहित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छति। तं जहा
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JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA
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