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Gurumal
अजाज
३ : सन्निहीं गिहिमत्ते य रायपिंडे किमिच्छए।
संबाहणा दंतपहोयणा य संपुच्छणा देहपलोयणा य॥ __१0. सन्निधि-खाद्य वस्तु का संग्रह करना (रात बासी रखना), ११. गृहि
अमत्र-गृहस्थ के बर्तन में भोजन करना, १२. राज पिण्ड-राजाओं के भोजनशाला में बना अर्थात् अत्यन्त स्वादिष्ट तथा पौष्टिक भोजन, १३. किमिच्छक-तुम कौन हो क्या चाहते हो? इस प्रकार पूछकर दिया जाने वाला दानशाला या सदाव्रतों का भोजन, १४. सम्बाधन-अंगमर्दन (मालिश करना), १५. दंत प्रधावनदंत-मंजन, दातुन आदि से दाँत पखारना, १६. संप्रच्छन-गृहस्थ से कुशलक्षेम पूछना तथा उसमें रुचि रखना, १७. देह प्रलोकन-विभूषा की भावना से दर्पण में शरीर आदि देखना॥३॥
3. 10. Sannidhi-to store eatables, 11. Grihi amatra-to eat from the same plate with a householder, 12. Raj pindfood from a king's kitchen or very tasty and nutritious food, 13. Kimicchak-food from welfare kitchens which is given after asking questions like who are you?, what do you want?, 14. Sambadhan-being massaged, 15. Dant pradhavancleaning teeth with paste, powder, or fingers, 16. Sampracchan—to be interested in a householder and to inquire about his welfare, 17. Deh pralokan-to look into a mirror with the intention of appreciation and beautification of one's own body.
४ : अट्ठावए य नालीए छत्तस्स य धारणट्टाए।
तेगिच्छं पाहणा पाए समारंभं च जोइणो॥ १८. अष्टापद-जुआ, शतरंज खेलना, १९. नालिका-पासा खेलना अथवा अन्य प्रकार की चूत क्रीड़ा, २0. छत्र-छत्र अथवा छाता का उपयोग करना, २१. चैकित्स्य-चिकित्सा करवाना, २२. उपानत्-जूते पहनना, २३. ज्योति समारम्भ-आग जलाना॥४॥
Moti
KSAN
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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