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विशेषार्थ : __ श्लोक २. रात्रिभुक्त अथवा रात्रि भोजन-यह चार प्रकार का बताया है-(१) दिन में लाकर दूसरे दिन, दिन के समय खाना, (२) दिन में लाकर रात्रि में खाना, (३) रात में लाकर दिन में खाना, और (४) रात में लाकर रात में खाना। इन चारों का ही निषेध है। (अगस्त्यसिंह चूर्णि)
आगमों में स्थान-स्थान पर रात्रि भोजन को जीवहिंसा का कारण बताकर उसका सर्वथा निषेध किया है।
स्नान निषेध-इसके पीछे दो महत्त्वपूर्ण कारण बताये जाते हैं। पहला-वैदिक परम्परा में स्नान को एक पवित्र कर्म और मोक्ष की प्राप्ति का साधन माना जाता है। जबकि भगवान महावीर ने कहा है-स्नान से अपकाय के जीवों की हिंसा स्पष्ट रूप में होती है, अतः जल-स्नान से मुक्ति मानना निरा अज्ञान व मिथ्यात्व है। दूसरा कारण ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए शरीर को विभूषा से दूर रखने के लिए मुनि को अस्नान व्रत का विधान है। इसी कारण अचित्त जल से स्नान करने का भी निषेध किया गया है। (सूत्रकृतांग सूत्र १/७/१२-२२) ELABORATION:
(2) Eating after sunset-This is of four types—(1) bringing food during the day and eating it the next day; (2) bringing during the day and eating during the night; (3) bringing during the night and eating the next day; and (4) bringing during the night and eating the same night. All these are prohibited. (Agastyasimha Churni)
In the canonical literature eating during the night has been strictly prohibited time and again because it is held to be a cause of harm to beings.
Prohibition of bathing-Two reasons are given for this. One is that in Vedic tradition bathing or anointing is believed to be one of the means of attaining liberation. Opposing this, Bhagavan Mahavir has said that bathing or anointing certainly causes harm to the water-bodied beings. Thus, the belief that bathing leads to liberation is clearly a fallacy and ignorance. The other reason is that in order to protect celibacy an ascetic is not allowed to beautify his body. Therefore, taking a bath with uncontaminated water is also prohibited. (Sutrakritang Sutra 1/7/12-22)
तृतीय अध्ययन : क्षुल्लकाचार कथा Third Chapter : Khuddayayar Kaha
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