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यहाँ पर मदन-काम को ध्यान में रखकर 'काम' शब्द का प्रयोग किया गया है। मदन-काम का अभिलाषी श्रामण्य का पालन नहीं कर सकता।
भोग-इन्द्रिय-विषयों का सेवन करना भोग है। सामान्यतः काम-भोग शब्द का प्रयोग एक साथ होता है और एकार्थक जैसे लगते हैं, किन्तु काम का अर्थ वासना है, जबकि भोग का अर्थ है विषय का सेवन करना। आगमों में रूप और शब्द को 'काम' तथा स्पर्श, रस और गंध को ‘भोग' कहा गया है।
प्रस्तुत प्रसंग में काम-भोग का अर्थ है, इच्छित प्रिय विषयों का सेवन करना।
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ELABORATION:
(1) Kaam-The wish to possess a desired thing is Kamana (desire) or Kaam (lust). According to Jinadas Churni (page 75), the desire to satisfy the pleasurable needs of the five senses--word, form, aroma, taste, and touch-is known as physical lust. Mental lust has two types-fancies and indulgence in sexual activities. Here the context is sexual activities. One having sexual cravings cannot observe asceticism.
Bhog–To indulge in activities pleasurable to the five senses is bhog or indulgence. Generally kaam and bhog are used in conjunction and they appear to be synonyms. However, kaam means lust and bhog means indulgence. In the Agams the subjects of desire are form and words or speech, and those of indulgence are touch, taste, and smell. Here the reference is to indulgence in desires.
त्यागी कौन ?
२ : वत्थगन्धमलंकारं इत्थीओ सयणाणि य।
अच्छंदा जे न भुंजंति न से चाइ त्ति वुच्चइ॥ जो व्यक्ति पराधीनता या परवशता के कारण वस्त्र, सुगन्धित वस्तुएँ, अलंकार, स्त्री और शयन-आसन आदि का उपभोग नहीं कर सकता, वह त्यागी नहीं है॥२॥
द्वितीय अध्ययन : श्रामण्यपूर्विका Second Chapter : Samanna Puvviya
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