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विइयं अज्झयणं : सामण्णपुव्विया द्वितीय अध्ययन : श्रामण्यपूर्विका
SECOND CHAPTER: SAMANNA PUVVIYA PROLOGUE TO ASCETICISM
काम और श्रमणत्व का परस्पर विरोध
१ : कहं नु कुज्जा सामण्णं जो कामे न निवारए । पए पए विसीयंतो संकप्पस्स वसंगओ ॥
जो काम-राग (विषयों की आसक्ति) का निवारण नहीं करता, वह अपने श्रामण्य (श्रमण-धर्म) का पालन कैसे करेगा? ऐसा व्यक्ति संकल्पों ( काम अध्यवसाय) के वश होकर पग-पग पर विषादग्रस्त ( खेद - खिन्न ) होता रहता है ॥१॥
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CONTRARIETY BETWEEN LUST AND ASCETICISM
1. How can a person who cannot control his desires to indulge in lust and other such activities be steadfast in his asceticism? Driven by his desires, such a person embraces misery at every step.
विशेषार्थ :
श्लोक १. काम- किसी प्रिय वस्तु की इच्छा करना - कामना या काम है। कामिज्जमाणा विसयपसत्तेहिं कामा ।
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-जिनदासचूर्णि, पृ. ७५
पाँच इन्द्रियों को प्रिय - शब्द-रूप-गंध-रस तथा स्पर्श के सेवन की लालसा द्रव्य-काम कहलाता है। भाव-काम के दो भेद हैं- इच्छा-काम तथा मदन- काम।
चित्त की अभिलाषा इच्छा - काम है तथा वेदोदय जनित काम भोग में प्रवृत्ति करना मदन- काम (सेक्स) है।
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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