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३. तृतीय अध्ययन का विषय निशीथ सूत्र से लिया गया है। ४. चतुर्थ अध्ययन का विषय आचारांग सूत्र के २४ वें अध्ययन के अनुसार रचा गया है। ५. पाँचवें अध्ययन की रचना आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध के पिण्डैषणा नामक प्रथम KA
अध्ययन के आधार पर की गई। ६. छठा अध्ययन समवायांग सूत्र के अष्टादश समवाय की शिक्षाओं का विवेचन है। ७. सातवां अध्ययन आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध के तेरहवें भाषा नामक अध्ययन से
संग्रहीत है। ८. आठवां अध्ययन स्थानांग सूत्र के आठवें स्थान से विवेचनपूर्वक लिया गया है। इसी प्रकार नवम, दशम अध्ययन का विषय भी भिन्न-भिन्न आगमों की शिक्षाओं का संकलन है। इस प्रकार प्रथम मान्यता की अपेक्षा यह मान्यता अधिक संगत और बलवान प्रतीत होती है।
-(आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज प्रस्तावना पृ. ९) दशवकालिक का वर्ण्य-विषय
यों तो यह सूत्र श्रमण आचार से सम्बन्धित है। इसमें श्रमण जीवन चर्या का ही विविध रूप में वर्णन हुआ है। इसके दस अध्ययनों में मुख्य रूप में निम्न विषयों का वर्णन है
प्रथम अध्ययन में धर्म की महिमा व भिक्षाचरी का महत्त्व। द्वितीय अध्ययन में संयम में धैर्य रखने का उपदेश। तृतीय अध्ययन में संयम की निर्दोषता के लिए छोटे-छोटे नियमों का वर्णन।
चतुर्थ अध्ययन में अहिंसा व जीव-रक्षा की दृष्टि से षट्जीवों की रक्षा का उपदेश। पंचम अध्ययन में शुद्ध भिक्षाचरी की विधि। छठे अध्ययन में अष्टादश स्थानों के रूप में महाचार का कथन। सातवें अध्ययन में अहिंसा की दृष्टि से भाषा-शुद्धि का वर्णन। आठवें अध्ययन में आचार की विशिष्ट शिक्षाएँ। नवें अध्ययन में विनय एवं चार समाधियों का वर्णन ।
दशवें अध्ययन में भिक्षु का स्वरूप दर्शन। दशवैकालिक सूत्र के व्याख्या ग्रन्थ
आचार्यसम्राट् श्री आत्माराम जी महाराज ने जब सर्वप्रथम दशवकालिक सूत्र पर हिन्दी भाष्य - लिखा तो उनके समक्ष दशवकालिक की नियुक्ति, टीका एवं दीपिका तीन व्याख्या ग्रन्थ विद्यमान थे।
नियुक्ति की रचना का समय है विक्रम की पाँचवीं-छठी शताब्दी। इसके रचयिता हैं भद्रबाहु द्वितीय।
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