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________________ सूत्र २७ तए णं से अज्जुणए अणगारे तेहिं बहूहिं इत्थीहिं य पुरिसेहिं य डहरेहिं य मल्लेहिं य जुवाणएहिं य आओसेज्जमाणे जाव तालेज्जमाणे तेसिं मणसा वि अपउस्समाणे सम्मं सहइ, सम्मं खमइ, सम्मं तितिक्खइ, सम्म अहियासेइ, सम्म सहमाणे, खममाणे, तितिक्खमाणे, सम्म अहियासमाणे रायगिहे णयरे उच्च-णीय-मज्झिमकुलाइं अडमाणे जइ भत्तं लभइ तो पाणं ण लभइ, जइ पाणं लभइ तो भत्तं ण लभइ । तए णं से अज्जुणए अणगारे अदीणे, अविमणे, अकलुसे, अणाइले, अविसाई, अपरितंतजोगी, अडइ । अडित्ता रायगिहाओ णयराओ पडिणिक्खमइ । पडिणिक्खमित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे जहा गोयमसामी जाव पडिदंसेइ; पडिदंसित्ता समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे अमुच्छिए अगिद्धे बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणेणं तमाहारं आहारेइ । सूत्र २0 : इस प्रकार बहुत से स्त्री-पुरुषों, बच्चों, बूढ़ों और जवानों से आक्रोश, गाली एवं विविध प्रकार की ताड़ना-तर्जना आदि पाकर भी वे अर्जुन अणगार उन पर मन से भी द्वेष नहीं करते हुए उनके द्वारा दिये गये सभी परीषहों को समभावपूर्वक सहन करते (सम्म सहमाणे) प्रतीकार कर सकने की स्थिति में होते हुए भी क्षमा भाव धारण करते (खममाणे) उन कष्टों को प्रसन्नतापूर्वक झेल लेते (तितिक्खमाणे) एवं निर्जरा का लाभ समझकर (अहियासेमाणे) हर्षानुभव करते। सम्यग् ज्ञान पूर्वक उन सभी संकटों को सहन करते, क्षमा करते, तितिक्षा रखते, और उन कष्टों को भी आत्म-लाभ का हेतु मानते हुए राजगृह नगर के छोटे-बड़े-मध्यम कुलों में भिक्षा हेतु भ्रमण करते। तब उन अर्जुन अणगार को कहीं कभी भोजन मिलता तो पानी नहीं मिलता, और पानी मिलता तो भोजन नहीं मिलता था । . २०२. अन्तकृद्दशा सूत्र : षष्ठम वर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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