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निकाला जाता था उसे देवस्थान पर ले जाकर प्रसाद रूप में बाँटा जाता था । उसी अग्रपिण्ड की यहाँ देवादि के निमित्त से होने वाली छह प्रक्रियाएँ बताई गयी हैं
( 9 ) देवता के लिए अग्रपिण्ड का निकालना, (२) अन्यत्र खाना, (३) देवालय आदि में ले जाना, (४) उसमें से प्रसाद बाँटना, (५) उस प्रसाद को खाना, (६) देवालय के चारों दिशाओं में फेंकना।
इन प्रक्रियाओं के बाद वह अग्रपिण्ड भिक्षाचरों को दिया जाता है।
Elaboration-Aggapind (Agrapind)—the small portions of the food that are taken out immediately on cooking and kept separate as offering for deities; the first portion. This indicates that in ancient times the first portion of food allotted to deities (prasad or bhog) was carried to the temple and distributed. Six rituals involved before distribution of this first portion apportioned to deities are mentioned here
(1) To take out first portion for deities, (2) to eat from it at some other place, (3) to carry it to a temple or other such place, (4) to distribute prasad out of it, (5) to eat that prasad, (6) to toss it in all directions around the temple.
After all these rituals are conducted the remaining quantity is distributed among alms-seekers or beggars.
विशेष शब्दों के अर्थ-हीरमाणं - एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हुए । असिणाई -पहले, दूसरे श्रमणादि उस अग्रपिण्ड का सेवन कर चुके हैं। अवहाराई - कुछ पहले व्यवस्था या अव्यवस्थापूर्वक जैसे-तैसे उसे ले चुके हैं। (वृत्ति पत्र ३३६)
Technical Terms: Heeramanam-while carrying from one place to another. Asinaim-other Shramans (etc.) have eaten from that first portion earlier. Avaharaim-others have earlier taken from it in organized or disorganized manner. (Vritti leaf 336).
विषम मार्गादि से भिक्षा के लिए जाने का निषेध
२६. से भिक्खू वा २ जाव समाणे अंतरा से वप्पाणि वा फलिहाणि वा पागाराणि वा तोरणाणि वा अग्गलाणि वा अग्गलपासगाणि वा, सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमिज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा । केवली बूया - आयाणमेयं ।
आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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