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पंचमो उद्देसओ
पंचम उद्देशक
LESSON FIVE
र
अग्रपिण्ड-ग्रहण-निषेध
२५. से भिक्खू वा २ जाव पविढे समाणे से जं पुण जाणेज्जा, अग्गपिंडं उक्खिप्पमाणं पेहाए, अग्गपिंडं णिक्खिप्पमाणं पेहाए, अग्गपिंड हीरमाणं पेहाए, अग्गपिंडं परिभाइज्जमाणं पेहाए, अग्गपिंडं परिभुंजमाणं पेहाए, अग्गपिंडं परिदृविज्जमाणं पेहाए, पुरा असिणाइ वा अवहाराइ वा, पुरा जत्थऽण्णे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा खद्धं खद्धं उवसंकमंति, से हंता अहमवि खद्धं खलु उवसंकमामि। माइट्ठाणं संफासे। णो एवं करेज्जा।
२५. वह भिक्षु या भिक्षुणी भिक्षा के निमित्त गृहस्थ के घर में पहुंचने पर अग्रपिण्ड को निकालते हुए देखता है, अग्रपिण्ड को रखते हुए देखकर अग्रपिण्ड को कहीं ले जाते हुए देखकर, बाँटते हुए देखकर अग्रपिण्ड को खाते हुए देखकर, इधर-उधर फेंकते हुए देखकर तथा पहले अन्य श्रमण-ब्राह्मणादि (इस अग्रपिण्ड का) भोजन कर गए हैं एवं कुछ भिक्षाचर पहले इसे लेकर चले गए हैं अथवा पहले (हम लेंगे, इस विचार से) यहाँ दूसरे श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, दरिद्र, याचक आदि (अग्रपिण्ड लेने) जल्दी-जल्दी आ रहे हैं, (उन्हें देखकर) कोई साधु विचार करे कि मैं भी (इन्हीं की तरह) जल्दी-जल्दी पहुँचूँ, तो (ऐसा करने वाला साधु) माया-स्थान का सेवन करता है। वह ऐसा न करे। CENSURE OF ACCEPTING AGRAPIND
25. When a bhikshu or bhikshuni while entering the house of a layman in order to seek alms finds that agrapind is being taken out, placed, taken away, distributed, eaten or thrown away; or other Shramans, Brahmins (etc.) have already eaten from it or have taken away from it; or other Shramans, Brahmins (etc.) are rushing in with the intention to seek first; and thinks that I too should rush (like them). Then (the ascetic doing so) embraces (indulges in) deceit. He should not do so.
विवेचनअग्गपिंड-जो भोजन तैयार होने के बाद किसी अन्य को न देकर, पहले उसमें से थोड़ा-थोड़ा अंश देवता आदि के लिए निकाला जाता है उसे अग्रपिण्ड कहते हैं। इससे यह पता चलता है कि प्राचीन काल में भोजन में से सर्वप्रथम देव आदि के निमित्त जो प्रसाद या भोग
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पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन
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Pindesana : Frist Chapter Contat o riSIC OraootoPEGGCOMCHORT
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