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से तत्थ परक्कममाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा, से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा तत्थ से का उच्चारेण वा पासवणेण वा खेलेण वा सिंघाणएण वा वंतेण वा पित्तेण वा पूण वा सुक्केण वा सोणिएण वा उवलित्ते सिया । तहप्पगारं कायं णो अनंतरहियाए पुढवीए, णो ससणिद्धाए पुढवीए, णो ससरक्खाए पुढवीए, णो चित्तमंताए सिलाए, णो चित्तमंताए लेलूए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे जाव संताणए णो आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा, संलिहेज्ज वा णिल्लिहेज्ज वा उव्वलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा आयवेज्ज वा पयावेज्ज वा ।
से पुव्वामेव अप्पससरक्खं तणं वा पत्तं वा कट्टं वा सक्करं वा जाएज्जा, जाइत्ता से त्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा २ अहे झामथंडिल्लंसि वा जाव अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि पडिलेहिय २ पमज्जिय २ तओ संजयामेव आमज्जेज्ज वा जाव पयावेज्ज वा ।
२६. वह भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में आहारार्थ जावे, तब रास्ते के बीच में ऊँचे-नीचे भू-भाग या बीज बोने की खेत की क्यारियाँ हों या खाइयाँ हों अथवा बाँस की टाटी हो या परकोटा हो, बाहर के द्वार (बंद) हों, आगल हों, अर्गला - पाशक हों तो दूसरा मार्ग होने पर संयमी साधु उसी दूसरे मार्ग से जाए, उस सरल मार्ग से न जाए; क्योंकि केवली भगवान कहते हैं - यह कर्मबंध का कारण है।
उस विषम मार्ग से जाते हुए भिक्षु का पैर फिसल जायेगा या (शरीर) डिग जायेगा अथवा गिर जायेगा। फिसलने, डिगने या गिरने पर उस भिक्षु का शरीर मल, मूत्र, कफ, श्लेष्म, वमन, पित्त, मवाद, शुक्र (वीर्य) और रक्त से लिपट सकता है। अगर कभी ऐसा हो जाए तो वह भिक्षु मल-मूत्रादि से उपलिप्त शरीर को सचित्त पृथ्वी - स्निग्ध पृथ्वी से, सचित्त चिकनी मिट्टी से, सचित्त शिलाओं से, सचित्त पत्थर या ठेले से या घुन लगे हुए काष्ठ से, जीवयुक्त काष्ठ से एवं अण्डे या प्राणियों के जालों आदि से युक्त काष्ठ आदि से अपने शरीर को न एक बार साफ करे और न बार-बार घिसकर साफ करे । न एक बार रगड़े या घिसे और न बार-बार घिसे, उबटन आदि की तरह मले नहीं, न ही उबटन की भाँति लगाए। एक बार या अनेक बार धूप में सुखाए नहीं ।
वह भिक्षु पहले सचित्त-रज आदि से रहित तृण, पत्ता, काष्ठ, कंकर आदि की याचना करे | याचना से प्राप्त करके एकान्त स्थान में जाए। वहाँ अग्नि आदि के संयोग से जलकर जो भूमि अचित्त हो गयी है उस भूमि का या अन्यत्र उसी प्रकार की प्रासुक भूमि की प्रतिलेखना तथा प्रमार्जना करके यत्नापूर्वक संयमी साधु स्वयमेव अपने शरीर को पोंछे, मले, घिसे यावत् धूप में एक बार व बार-बार सुखाए और शुद्ध करे ।
पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन
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Pindesana: Frist Chapter
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