________________
* 'अफासुयं' है, अर्थात् साधु के लिए तब तक अकल्पनीय है जब तक वह पुरुषान्तरकृत नहीं
हुआ हो। यदि उसमें से परिवार के सदस्य उपयोग कर लेते हैं तो वह पुरुषान्तरकृत होने के बाद कल्पनीय हो जाता है।
Elaboration—This aphorism informs about food prepared on some specific occasions, festivities or celebrations for the purpose of offering to Shramans, Brahmins, destitute and beggars. Such food, although not prepared specifically for ascetics, is not acceptable as long as it does not become purushantarakrit. When a portion of it has been consumed by the members of the family of the donor, it becomes purushantarakrit and so acceptable.
विशेष शब्दों के अर्थ-उक्खा-पिट्ठर, बड़ी बटलोई जैसा बर्तन। कुम्भी-सँकड़े मुँह वाले बर्तन। कलोवाती-पिटारी या बाँस की टोकरी। सन्निधि-गोरस-घी, दूध, गुड़ आदि।
Technical Terms : Ukkha-a small pitcher shaped pot. Kumbhi—a flask like pot with narrow neck. Kalovati—basket made of straw or reed. Sannidhi-milk, butter, jaggery etc.
भिक्षा-योग्य कुल
११. से भिक्खू वा २ जाव अणुपविढे समाणे जाइं पुण कुलाइं जाणिज्जा, तं जहा
उग्गकुलाणि वा भोगकुलाणि वा राइण्णकुलाणि वा खत्तियकुलाणि वा इक्खागकुलाणि वा हरिवंसकुलाणि वा एसियकुलाणि वा वेसियकुलाणि वा
गंडागकुलाणि वा कोट्टागकुलाणि वा गामरक्खकुलाणि वा बोक्कसालियकुलाणि वा | अण्णयरेसु वा तहप्पगारेसु अदुगुंछिएसु अगरहिएसु असणं वा ४ फासुयं जाव से पडिगाहिज्जा।
११. भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में आहार के लिए जाने पर (आहार ग्रहण करने योग्य) इन कुलों को जाने; जैसे
उग्र-कुल, भोग-कुल, राजन्य-कुल, क्षत्रिय-कुल, इक्ष्वाकु-कुल, हरिवंश-कुल, गोपालादि-कुल, वैश्य-कुल, नापित-कुल, बढ़ई-कुल, ग्रामरक्षक-कुल या तन्तुवाय-कुल; ये तथा इसी प्रकार के अन्य भी कुल, जो निन्दित न हों, गर्हित न हों, उन कुलों से प्रासुक और एषणीय अशनादि चतुर्विध आहार मिलने पर साधु उसे ग्रहण करे।
* * * *
*
आचारांग सूत्र (भाग २)
( २८ )
Acharanga Sutra (Part 2)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org