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बीओ उद्देसओ
| द्वितीय उद्देशक
LESSON TWO
" अष्टमी पर्वादि में आहार ग्रहण की विधि और निषेध ॐ १0. से भिक्खू वा २ गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविढे समाणे-से जं पुण
जाणेज्जा, असणं वा ४। २ अट्ठमिपोसहिएसु वा अद्धमासिएसु वा, मासिएसु वा, दोमासिएसु वा, तेमासिएसु
वा, चाउमासिएसु वा, पंचमासिएसु वा, छम्मासिएसु वा, उऊसु वा, उऊसंधीसु वा, उऊपरियट्टेसु वा।
बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगे एगाओ उक्खाओ परिएसिज्जमाणे पेहाए, दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए, तिहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए।
कुंभीमुहाओ वा कलोवाइओ वा संणिहि-संणिचयाओ वा परिएसिज्जमाणे पेहाए, तहप्पगारं असणं वा ४ अपुरिसंतरकडं जाव अणासेवियं अफासुयं अणेसणिज्जं जाव " णो पडिगाहेज्जा। से अह पुण एवं जाणेज्जा पुरिसंतरकडं जाव आसेवियं फासुयं जाव पडिगाहेज्जा।
१०. साधु-साध्वी आहार-प्राप्ति के निमित्त गृहस्थ के घर में प्रवेश करने पर अशन आदि आहार के सम्बन्ध में यह जाने कि
यह आहार अष्टमी, पौषधव्रत विशेष के उपलक्ष्य में तथा अर्द्ध-मासिक (पाक्षिक), मासिक, द्विमासिक, त्रैमासिक, चातुर्मासिक, पंचमासिक और षाण्मासिक उत्सवों के उपलक्ष्य में तथा ऋतुओं, ऋतु-सन्धियों एवं ऋतु-परिवर्तनों के उत्सवों के उपलक्ष्य में बना
बहुत-से श्रमण, माहन, अतिथि, दरिद्र एवं भिखारियों को एक बर्तन से (लेकर) परोसते हुए देखकर, दो बर्तनों से (लेकर) परोसते हुए देखकर, या तीन बर्तनों से (लेकर) परोसते हुए देखकर एवं चार बर्तनों से (लेकर) परोसते हुए देखकर
तथा सँकड़े मुँह वाली कुम्भी और बाँस की टोकरी में से (लेकर) एवं संचित किए हुए (दूध, दही, घी, गुड़) पदार्थों को परोसते हुए देखकर, यदि वह पुरुषान्तरकृत नहीं है, (घर से बाहर निकाला हुआ नहीं है, दाता द्वारा अधिकृत नहीं है, परिभुक्त) और आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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