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________________ Wahhhh *: 0040.Goob.ladiesinshaninai | बीओ उद्देसओ द्वितीय उद्देशक LESSON TWO वस्त्र धारण की सामान्य विधि २३६. से भिक्खू वा २ अहेसणिज्जाई वत्थाई जाएज्जा, अहापरिग्गहियाइं वत्थाई धारेज्जा, णो धोएज्जा, णो रएज्जा, णो धोत-रत्ताइं वत्थाइं धारेज्जा, अपलिउंचमाणे गामंतरेसु, ओमचेलिए। एयं खलु वत्थधारिस्स सामग्गियं। ___ २३६. साधु-साध्वी एषणीय और निर्दोष वस्त्रों की याचना करे, मिलने पर वस्त्रों को धारण करे, परन्तु विभूषा के लिए उन्हें न तो धोए, न ही रँगे तथा न धोए हुए व रंगे हुए वस्त्रों को पहने। उन साधारण-से वस्त्रों को धारण करके ग्रामान्तर में समतापूर्वक विचरण करे। वस्त्रधारी श्रमण का यह समग्र आचार सर्वस्व है। NORMAL PROCEDURE OF WEARING CLOTHES 236. A bhikshu or bhikshuni should beg for acceptable and faultless clothes and wear them when he gets. But in order to beautify he should neither wash or dye these clothes nor wear washed and dyed clothes. Wearing those simple clothes he should equanimously move about in villages. This is the whole duty of a clad ascetic. विवेचन-वस्त्र धारण करने के विषय में इस सूत्र में तीन बातें कही हैं(१) सादे एवं साधारण अल्प मूल्य वाले एषणीय वस्त्र की याचना करे। (२) उन्हें रँग-धोकर या उज्ज्वल एवं चमकीले-भड़कीले बनाकर न पहने। (३) ग्राम, नगर आदि में विचरण करते समय भी उन्हीं साधारण-से वस्त्रों में रहे। ___णो धोएज्जा णो रएज्जा' पद पर विवेचन करते हुए आचार्य श्री आत्माराम जी म. ने लिखा है-“यह निषेध साज-सज्जा, विभूषा, शृंगार तथा छैल छबीला बनने की दृष्टि से है। अच्छा दिखने की दृष्टि से वस्त्रों को विशेष उज्ज्वल करना निषिद्ध है। किन्तु यदि वस्त्र पर किसी प्रकार की गंदगी लगी हो या लोक में घृणा उत्पन्न होती हो तब तो साधु विवेकपूर्वक साफ करता है तो शास्त्र का निषेध नहीं है। किन्तु विभूषा या सजावट की भावना से वस्त्र धोने का निषेध है।" वृत्तिकार शीलांकाचार्य का मत है-यह सूत्र जिनकल्पिक के उद्देश्य से उल्लिखित समझना चाहिए, वस्त्रधारी विशेषण होने से स्थविरकल्पी के भी अनुरूप है। वस्त्रैषणा : पंचम अध्ययन ( ३३७ ) Vastraishana : Fifth Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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