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________________ to-t+ An ascetic can accept these six types and other such types of clothes. A male ascetic who is young, born in the third or fourth phase of the time cycle, strong, free of ailments and of sturdy constitution, should wear only one cloth, not any more. But a female ascetic can wear four pieces of cloth out of which one should be two cubits long, two three cubits long and one four cubits long. If exact lengths are not available she could stitch two pieces together. विवेचन-प्रस्तुत सूत्र के अलावा स्थानांग, बृहत्कल्प आदि सूत्रों में भी साधु द्वारा ग्रहणीय वस्त्र के प्रकारों का वर्णन मिलता है। स्थानांगसूत्र में जिन पाँच प्रकार के वस्त्रों का उल्लेख है, उनमें क्षौमिक और तूलकृत का नामोल्लेख नहीं है, इनके बदले 'तिरीदुपट्ट' का उल्लेख है। इन छह प्रकार के वस्त्रों की व्याख्या इस प्रकार है १. जांगमिक-(जांगिक) जंगम (त्रस) जीवों से निष्पन्न । वह दो प्रकार का है-विकलेन्द्रियजन्य (लट कीट आदि) और पंचेन्द्रियजन्य। विकलेन्द्रियजन्य वस्त्र पाँच प्रकार का है-(१) पट्टज, (२) सुवर्णज (मटका), (३) मलयज, (४) अंशक, और (५) चीनांशुक। ये सब कीटों (शहतूत के कीड़े वगैरह) के मुँह से निकले तार (लार) से बनते हैं। __पंचेन्द्रिय प्राणी से निष्पन्न वस्त्र अनेक प्रकार के होते हैं, जैसे-(१) और्णिक-(भेड़, बकरी आदि की ऊन से बना हुआ), (२) औष्ट्रिक-(ऊँट के बालों से बना हुआ), (३) मृगरोमजशशक या मूषक के रोम या बालमृग के रोएँ से बना हुआ, (४) किट्ट-(अश्व आदि के रोएँ से बना हुआ), और (५) कुतप-(चर्म-निष्पन्न या बाल-मृग, चूहे आदि के रोएँ से बना हुआ)। (विशेषावश्यक भाष्य, गाथा ८७८ वृत्ति मूषिकलोमनिष्पन्न-कौतवम्) २. भांगिक-भांगिक उसे कहते हैं जो अलसी से निष्पन्न है अथवा वंशकरील के मध्य भाग को कूटकर बनाया जाता है। मूल सर्वास्तिवाद के विनयवस्तु, पृ. ९२ में भी 'भांगेय' वस्त्र का उल्लेख है। यह वस्त्र भांग वृक्ष के तन्तुओं से बनाया जाता था। अभी भी कुमाऊँ (उ. प्र.) में इसका प्रचार है, वहाँ 'भागेला' नाम से जानते हैं। (डॉ. मोतीचन्द; भारतीय विद्या १/१/४१) ३. सानिक (सानज)-पटसन (पाट), लोध की छाल, तिरीड़ वृक्ष की छाल के तन्तु से बना हुआ वस्त्र सानज होता है। ४. पोत्रक-ताड़ आदि के पत्रों के समूह से निष्पन्न वस्त्र पोत्रक कहलाता है। ५. खोमियं (क्षौमिक)-कपास (रुई) से बना हुआ वस्त्र खोमिय कहलाता है। ६. तूलकड (तूलकृत)-आक आदि की रुई से बना हुआ वस्त्र तूलकड कहा जाता है। वस्त्रैषणा : पंचम अध्ययन ( ३११ ) Vastraishana : Fifth Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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