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पढमो उद्देसओ
वत्थेसणा : पंचमं अज्झयणं वस्त्रैषणा : पंचम अध्ययन
VASTRAISHANA: FIFTH CHAPTER SEARCH FOR CLOTHES
प्रथम उद्देशक
ग्राह्य वस्त्रों का प्रकार व परिमाण
२११. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा वत्थं एसित्तए । से जं पुण वत्थं जाणेज्जा, तं जहा - जंगियं वा भंगियं वा साणियं वा पोत्तगं वा खोमियं वा तूलकडं वा । तहप्पगारं वत्थं जे णिग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे से एगं वत्थं धारेज्जा, णो बिइयं । *
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Plea
जा णिग्गंथी सा चत्तारि संघाडीओ धारेज्जा एगं दुहत्थवित्थारं, दो तिहत्थवित्थाराओ, एगं चउहत्थवित्थारं । तहप्पगारेहिं वत्थेहिं असंधिज्जमाणेहिं अह पच्छा एगमेगं संसीवेज्जा ।
LESSON ONE
२११. संयमी साधु-साध्वी वस्त्र की गवेषणा करना चाहते हों, तो वस्त्रों के सम्बन्ध में जानना चाहिए, जैसे - ( १ ) जांगमिक, (२) भांगिक, (३) सानिक, (४) पोत्रक, (५) क्षौमिक, और (६) तूलकृत । ये छह प्रकार के तथा इसी प्रकार के अन्य वस्त्र को भी मुनि ग्रहण कर सकता है। जो साधु तरुण है; तीसरे या चौथे आरे का जन्म हुआ है, बलवान, रोगरहित और स्थिर (दृढ़ शरीर ) वाला है, वह एक ही वस्त्र धारण करे, दूसरा नहीं।
परन्तु साध्वी चार संघाटिका- चादर धारण कर सकती है - उसमें एक दो हाथ प्रमाण चौड़ी, दो तीन हाथ प्रमाण और एक चार हाथ प्रमाण लम्बी-चौड़ी होनी चाहिए। इस प्रकार के वस्त्र न मिलने पर वह वस्त्र को दूसरे के साथ सी ले ।
THE TYPE AND QUANTITY OF ACCEPTABLE CLOTHES
211. When a disciplined bhikshu or bhikshuni wants to explore for clothes he should first know this about clothes – (1) Jangamik, (2) Bhangik, (3) Sanik, (4) Potrak, (5) Kshaumik, and (6) Toolkrit.
आचारांग सूत्र (भाग २)
Acharanga Sutra (Part 2)
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