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है, इसकी पानी की बड़ी कुण्डी अथवा छोटी नौका अच्छी बन सकती है अथवा यह वृक्ष चौकी (पीठ), काष्टमयी पात्री (बर्तन), हल, कुलिक (कुल्हाड़ी), यंत्रयष्टी (कोल्हू ) चक्र की नाभि, काष्ठमय अहरन ( सुनार का उपकरण ) काष्ठ का आसन आदि बनाया जा सकता है अथवा काष्ठ शय्या ( पलंग ) रथ आदि यान, उपाश्रय आदि के निर्माण में काम आने योग्य है । इस प्रकार की पाप सहित यावत् जीव-हिंसा अनुमोदनी भाषा का प्रयोग नहीं करे ।
202. When a disciplined bhikshu or bhikshuni sometimes goes into gardens, mountains or jungles, and sees large trees he should not say this tree is good for falling and using in a building, this is good for making city gate, this is good for making a house or this can be used to make a plank, bolt, boat, a large tub or a small boat or this is good for stool, pot, plough, axe, axis of oil press, chisel handle, platform etc. or its wood can be used in making a bed, chariot, ascetic-hostel etc. He should not utter such sinful and violent language.
२०३. से भिक्खू वा २ तहेव गंतुमुज्जाणाइं पव्वयाणि वणाणि य रुक्खा महल्ल पेहाए एवं वइज्जा, तं जहा - जातिमंता ति बा, दीहवट्टा ति वा, महालया ति वा, पयायसाला ति वा, विडिमसाला ति वा, पासादिया ति वा जाव पडिरूवात्ति वा एप्पगार भासं असावज्जं जाव अभिकंख भासेज्जा ।
२०३. संयमी साधु-साध्वी उद्यानों, पर्वतों या वनों में जाने पर, यदि प्रयोजन हो तो वहाँ विशाल वृक्षों को देखकर इस प्रकार की भाषा बोल सकता है कि ये वृक्ष उत्तम जाति के हैं, दीर्घ (लम्बे ) हैं, वृत्त (गोल) हैं, ये महालय विस्तार वाले हैं, इनकी शाखाएँ फट गई हैं, इनकी प्रशाखाएँ दूर तक (ऊँची) फैली हुई हैं, ये वृक्ष मन को प्रसन्नता देने वाले हैं, दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं, प्रतिरूप - सुन्दर हैं। इस प्रकार की निरवद्य यावत् जीवोपघातरहित भाषा का प्रयोग किया जा सकता है।
203. On seeing (if an occasion to speak about them arises) aforesaid large trees, bhikshu or bhikshuni should say these are good species of trees, they are tall, round, large and thick, they have split branches, they have well developed and high branches, these trees are pleasing, enchanting, beautiful and
आचारांग सूत्र (भाग २)
( २९८ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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