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१९६. साधु-साध्वी उपस्कृत - तैयार हुए अशनादि चतुर्विध आहार को देखकर भी इस प्रकार न कहे कि यह आहारादि पदार्थ अच्छा बना है या सुन्दर बना है, अच्छी तरह तैयार किया गया है या कल्याणकारी है और अवश्य करने योग्य है । इस प्रकार की सावद्य यावत् जीवोपघातकारी भाषा नहीं बोले ।
196. When a disciplined bhikshu or bhikshuni sees a variety of eatables including the four types of food (staple food, liquids, general food and savoury food) should not say-It is well made, it is very well made, it is made beautiful, it is beneficial, it is worth making. He should not utter such sinful and violent (approving sinful activities that involve violence to beings) language.
१९७. से भिक्खू वा २ असणं वा ४ उवक्खडियं पेहाए एवं वइज्जा, तं जहा - आरम्भकडे ति वा, सावज्जकडे ति वा, पयत्तकडे ति वा, भद्दयं भद्देति वा, ऊसढं ऊसढे ति वा, रसियं रसिए ति वा, मणुण्णं मणुण्णे ति वा, एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव भासेज्जा ।
१९७. संयमी साधु-साध्वी मसालों आदि से तैयार किये हुए सुसंस्कृत आहार को देखकर (आवश्यकता होने पर) इस प्रकार कह सकते हैं कि यह आहारादि पदार्थ बहुत आरम्भ से बनाया है, सावद्यकृत है, अतीव प्रयत्नपूर्वक बना है, भद्र अर्थात् वर्ण, गंध, रस आदि से युक्त है, उत्कृष्ट है सरस है, मनोज्ञ है; इस प्रकार की निरवद्य यावत् हिंसारहित भाषा का प्रयोग करना चाहिए ।
197. On seeing (if an occasion to speak about them arises) aforesaid well prepared food, a bhikshu or bhikshuni should say this has been made intentionally, sinfully and with an effort. If it looks good it should be called so, if it has good aroma it should be called excellent, if it has good flavour it should be called savoury, and if it appears desirable it should be called so. He should thoughtfully utter such sinless and benign language.
१९८. से भिक्खू वा २ मणुस्सं वा गोणं वा महिसं वा मिगं वा पसुं वा पक्खिं वा सरीसिवं वा जलचरं वा से त्तं परिवूढकायं पेहाए णो एवं वइज्जा - थुल्ले ति वा, मेइले ति वा, वट्टेति वा, वज्झे ति वा, पाइमे ति वा । एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव ण भासेज्जा ।
भाषाजात : चतुर्थ अध्ययन
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Bhashajata: Fourth Chapter
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