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१३७. साधु-साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए यदि उस मार्ग में नौका द्वारा पार योग्य जल हो (तो वह नौका द्वारा उस नदी आदि को पार करे), परन्तु इस बात का ध्यान रखे कि वह नौका गृहस्थ साधु के निमित्त मूल्य देकर लेता हो या उधार ले रहा हो अथवा अपनी नौका से उसकी नौका की अदला-बदली कर रहा हो या नौका को स्थल से जल में अथवा जल से स्थल में खींचकर लाता हो, जल से भरी हुई नौका को खाली करता हो अथवा कीचड़ में फँसी हुई नौका को बाहर निकालकर साधु के लिए तैयार करके साधु को उस पर चढ़ने की प्रार्थना करे, तो इस प्रकार की ऊर्ध्वगामिनी, अधोगामिनी या तिर्यक्गामिनी नौका जोकि उत्कृष्ट एक योजन-प्रमाण क्षेत्र में या अर्द्ध-योजन-प्रमाण क्षेत्र में चलने वाली हो, एक बार या बार-बार गमन करने के लिए थोड़े या बहुत समय के लिए साधु उस नौका से नदी को पार न करे।
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PROCEDURE OF RIDING A BOAT ____137. If an itinerant bhikshu or bhikshuni comes across a water-body that could be crossed in a boat (he should use a boat). But (before that) he should find if a householder buys or borrows the boat or gets in exchange of his own boat or draws a boat from land into water or from water to land or empties a water filled boat or pulls out a boat from marsh, prepares it specifically for the ascetic and requests the ascetic to board. If it is so, the ascetic should not use, once or many times for a short or a long period, such boat that plies one yojan or half yojan upstream, downstream or across for crossing a water-body.
१३८. से भिक्खू वा २ पुव्वामेव तिरिच्छसंपाइमं नावं जाणेज्जा, जाणित्ता से . त्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, २ (त्ता) भंडगं पडिलेहेज्जा, २ (त्ता) एगओ भोयणभंडगर
करेज्जा, २ (त्ता) ससीसोवरियं कायं पाए पमज्जेज्जा, २ सागारं भत्तं पच्चक्खाएज्जा, २ (त्ता) एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा तओ संजयामेव नावं दुरूहेज्जा।
१३८. आवश्यक होने पर नौका में बैठना पड़े तो साधु-साध्वी तिर्यक्गामिनी नौका से जाने की तैयारी करे। पहले गृहस्थ से आज्ञा लेकर एकान्त स्थान में जाये, भण्डोपकरण का प्रतिलेखन करे, तत्पश्चात् सभी उपकरणों को इकट्ठे करके बाँध ले। फिर सिर से पैर तक पूरे शरीर की प्रतिलेखना करे। पश्चात् आगार सहित भक्त-पान का प्रत्याख्यान करे। फिर एक पैर जल में और एक पैर स्थल में रखकर यतनापूर्वक उस नौका पर चढ़े।
आचारांग सूत्र (भाग २)
( २४० )
Acharanga Sutra (Part 2)
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