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२] से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा, बहवे समण-माहण-अतिहिकिवण-वणीमए समुद्दिस्स पाणाइं ४ जाव चेएइ। तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव अणासेविए णो ठाणं वा ३ चेएज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा पुरिसंतरकडे जाव आसेविए। पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा ३ चेएज्जा।
८0. [१] साधु-साध्वी यदि ऐसा उपाश्रय जाने, जो बहुत-से श्रमणों, ब्राह्मणों, अतिथियों, दरिद्रों एवं भिखारियों को गिन-गिनकर उनके उद्देश्य से षट्काय का समारम्भ करके बनाया गया है, जो क्रीत आदि दोषयुक्त है, वह यदि अपुरुषान्तरकृत तथा
अनासेवित हो, तो ऐसे उपाश्रय में कायोत्सर्ग आदि नहीं करना चाहिए। ___ [२] वह साधु या साध्वी; जाने कि कोई उपाश्रय बहुत-से श्रमणों, ब्राह्मणों, अतिथियों, दरिद्रों आदि को खास उद्देश्य करके बनाया गया है। किन्तु वह उपाश्रय यदि अपुरुषान्तरकृत तथा अनासेवित हो तो, उस उपाश्रय में कायोत्सर्ग आदि नहीं करना चाहिए। किन्तु यदि ऐसा उपाश्रय पुरुषान्तरकृत है, उसके स्वामी द्वारा अधिकृत है तो उसका प्रतिलेखन तथा प्रमार्जन करके वहाँ कायोत्सर्ग आदि कर सकता है। USED UPASHRAYA
80. [1] A bhikshu or bhikshuni should find if an upashraya has been constructed specifically for a large number of shramans, Brahmins, guests, destitute and beggars by sinful activities against six life-forms, and has other flaws like kreet (purchased specifically for someone). If it is so and it has not already been used by the owner then it should not be used for ascetic activities including meditation.
[2] If the bhikshu or bhikshuni finds that an upashraya has been constructed specifically for a large number of shramans, Brahmins, guests, destitute and beggars, and if it has not already been used by the owner then it should not be used for ascetic activities including meditation. However, if it has already been used by the owner and his permission has been taken then it can be used after inspecting and cleaning by the ascetic for his ascetic activities including meditation. आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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