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उपाश्रय- एषणा : औद्देशिक निषेध
७९. से जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा - अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई ४ समारंभ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छिज्जं अणिसट्टं अभिहडं आहटु चेए । तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा जाव आसेविए वा अणासेविए वा २ णो ठाणं वा ३ चेइज्जा । एवं बहवे साहम्मिया एगं साहम्मिणिं । बहवे साहम्मिणीओ।
७९. कदाचित् साधु ऐसा उपाश्रय जाने, जोकि गृहस्थ द्वारा किसी एक साधर्मिक साधु के उद्देश्य से प्राणियों का समारम्भ करके बनाया गया है। उसी के उद्देश्य से खरीदा गया है, उधार लिया गया है निर्बल से छीना गया है, उसके स्वामी की अनुमति के विना लिया गया है। तो ऐसा उपाश्रय; चाहे वह पुरुषान्तरकृत हो या अपुरुषान्तरकृत हो, उसके स्वामी द्वारा उपयोग में लिया गया हो या नहीं, उसमें कायोत्सर्ग आदि क्रियाएँ नहीं करनी चाहिए ।
इसी प्रकार जो बहुत-से साधर्मिक साधुओं, एक साधर्मिणी साध्वी, बहुत-सी साधर्मिणी साध्वियों आदि के उद्देश्य से बनाया गया हो तो उस उपाश्रय में कायोत्सर्गादि का निषेध समझना चाहिए।
CENSURE OF THE INTENTIONALLY BUILT
79. If the bhikshu or bhikshuni finds an upashraya that has been constructed for some particular co-religionist ascetic and the process involves violence of beings; or has been purchased or borrowed or forcibly snatched from others or taken without the permission of its owner, then it should not be used for meditation and other mentioned activities irrespective of its having been used or not used by the owner.
In the same way if it has been constructed for many coreligionist ascetics (male) or single female ascetic or many female ascetics, such upashraya should be considered prohibited for meditation etc. by ascetics.
पुरुषान्तरकृत उपाश्रय
८०. [१] से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा, बहवे समण-माहणअतिहि-किवण-वणीमए पगणिय २ समुद्दिस्स तं चेव भाणियव्वं ।
शय्यैषणा : द्वितीय अध्ययन
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Shaiyyaishana: Second Chapter
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