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हाथी आदि उन्मत्त व खतरनाक प्राणी मार्ग में बैठे या खड़े हों, (३) मार्ग के बीच में गड्ढा, ट्रॅट, काँटे, उतार वाली भूमि, फटी हुई जमीन, ऊबड़-खाबड़ जमीन, कीचड़ या दलदल पड़ता हो, तथा (४) गृहस्थ के घर का द्वार काँटों की बाड़ आदि से अवरुद्ध हो तो उस मार्ग या उस घर को छोड़ दे, दूसरा मार्ग साफ और ऐसे खतरों से रहित हो तो उस मार्ग से जाए; इन मार्गों से जाने पर संयम की विराधना होती है, शरीर को भी हानि पहुँचती है तथा गृहस्थ को अप्रीति (द्वेष), अप्रतीति (अविश्वास) आदि भी उत्पन्न हो सकता है।
यहाँ एक अपवाद भी बताया है-'सइ अन्नेण मग्गेण, जयमेव परक्कमे' यदि अन्य मार्ग न हो तो इन विषम मार्गों से सावधानी व यतनापूर्वक जा सकता है जिससे आत्म-विराधना और संयम-विराधना न हो। 'जति अण्णो मग्गो नत्थि ता तेण वि य पहेण गच्छेज्जा जहा आयसंजम विराहणा ण भवइ।' (जिनदास चूर्णि दशवै. ५/१) ___Elaboration-Aphorisms 26 10 29 point at the obstacles faced on the way while going to seek alms (1) humps and depressions, tilled rows of a farm, ditches, bamboo partitions, parapet walls, closed outer gates, bolts, bolt-holes and other such obstructions on the path; (2) a mad bull, a wicked person, mad horse, elephant, stands or sits on the path he is heading on; (3) there is a ditch, pillar or stump, thorns, depression, pitted patch of land, uneven land, muddy or marshy area on the way; and (4) the gate is covered with a thorny branch of tree. In such conditions he should avoid the path or the house and take another path which is clear and free of such dangers. Going on the said paths is detrimental to ascetic-discipline, harmful to the body and may invoke aversion and disbelief in the mind of the layman.
Here an exception is also mentioned--if there is no alternative path he may tread such path taking all possible care so as to avoid indiscipline and harm to himself.
विशेष शब्दों के अर्थ-वप्पाणि-वप्र-ऊँचा भू-भाग; ऐसा रास्ता जिसमें चढ़ाव ही चढ़ाव हो; अथवा ग्राम के निकटवर्ती खेतों की क्यारी भी वप्र कहलाती है। फलिहाणि-परिखा-खा याँ, प्राकार। तोरणाणि-नगर का बहिरि--(फाटक) या घर के बाहर का द्वार। अणंतरहियाए-जिसमें चेतना अन्तर्निहित हो-लुप्त न हो अर्थात् जो सचेतन हो वह पृथ्वी। कोलावासंसि वा दारुएकोल-घुण। गोणं वियालं-दुष्ट-मतवाला सांड। विगं-वृक-भेड़िया। दीवियं-चीता। अच्छं-रीछभालू। तरच्छं-जरख। परिसरं-अष्टापद। कोलसुणयं-महाशूकर। कोकंतियं-लोमड़ा। भिहुगा-फटी हुई काली जमीन। विज्जले-कीचड़, दलदल। दुवारबाहं-द्वार भाग। कंटग-बोदियाए-काँटे की झाड़ी
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पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन
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Pindesana : Frist Chapter
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