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अकायिक जीवों का जीवत्व
२२. लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकुतोभयं। २३. से बेमि-णेव सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, णेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा। जे लोगं अब्भाइक्खइ से अत्ताणं अब्भाइक्खइ। जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ से लोगं अब्भाइक्खइ।
२२. प्रत्यक्ष ज्ञानी पुरुषों की आज्ञा-(वाणी) से लोक को (अर्थात् अप्काय के जीवों का स्वरूप) जानकर उन्हें अकुतोभय बना दे (अर्थात् उन्हें किसी भी प्रकार का भय उत्पन्न न करे)।
२३. मैं कहता हूँ-मुनि स्वयं लोक (अप्कायिक जीवों के अस्तित्व) को अस्वीकार (निषेध) न करे और न (अपनी) आत्मा के अस्तित्व को अस्वीकार करे। ___ जो अप्काय लोक के अस्तित्व को अस्वीकार करता है वह (वास्तव में अपनी ही) आत्मा के अस्तित्व को अस्वीकार करता है।
जो अपनी आत्मा के अस्तित्व को अस्वीकार करता है वह लोक के अस्तित्व को - अस्वीकार करता है। ATTRIBUTES OF LIFE IN WATER-BODIED BEINGS
22. Comprehending the world (the world and form of water10 bodied beings) through the order (the word of the omniscient) free it of fear (refrain from causing fear to them). .
23. Thus I say, a muni should neither deny the world (the existence of water-bodied beings) nor the (existence of his own)
soul. He who denies the (existence of) world (water-bodied *30 beings), (in fact) denies (the existence of his own) soul. He who * denies (the existence of his own) soul denies the (existence of) * world (water-bodied beings).
विवेचन-पृथ्वीकाय के कथन के बाद यहाँ प्रसंग अनुसार 'लोक' का अर्थ अकाय किया * गया है। टीकाकार ने 'अकुतोभय' के दो अर्थ किये हैं-(१) जिससे किसी जीव को भय न हो,
वह संयम; तथा (२) जो कहीं से भी भय न चाहता हो, वह अप्कायिक आदि जीव।' यहाँ प्रथम अर्थ संयम मुख्य है। ___अपने अस्तित्व को तो कोई भी अस्वीकार नहीं करता, किन्तु जो व्यक्ति सूक्ष्म अप्कायिक जीवों की सत्ता को नकारता है, वह वास्तव में स्वयं की सत्ता को भी नकारता है। क्योंकि प्रत्येक
शस्त्र परिज्ञा : प्रथम अध्ययन
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Shastra Parijna : Frist Chapter
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