________________
इस संसार में प्राणी आत्मत्व ( अपने कृत कर्म के उदय) से उन-उन कुलों में ( शुक्र - शोणित के - ) अभिषेक - अभिसिंचन से ( माता के गर्भ में कललरूप होते हैं) फिर अर्बुद (माँस) और पेशी रूप बनते हैं, तदनन्तर अंगोपांग - स्नायु, नस, रोम आदि के क्रम से अभिनिष्पन्न (विकसित ) होते हैं, फिर प्रसव होकर ( जन्म लेकर ) संवर्द्धित होते हैं, तत्पश्चात् अभिसम्बुद्ध (सम्बोधि को प्राप्त) होते हैं, फिर धर्म-श्रवण करके विरक्त होकर अभिनिष्क्रमण करते हैं। इस प्रकार क्रमशः महामुनि बनते हैं ।
THE GRADUAL PROCESS OF BECOMING CLEANSED
182. O ascetic ! Know this and desire to listen, I will (now) state the theory of becoming cleansed.
In this world, beings, forced by their individuality (precipitation of their karmas), come to those various clans (are conceived in mother's womb) by impregnation (of semen or blood). After this they acquire a form with flesh and muscles and gradually develop tendons, nerves, hair ( and other organs). Then they are born and continue to grow. In due course they acquire wisdom, listen to preaching, get detached and renounce the world. This way they gradually become great sages.
विवेचन- इस अध्ययन में 'धुत' की चर्चा है। पिछले सूत्रों में 'धुत' बनने के सन्दर्भ में बताया है-प्राणी दुःखों से भयभीत है, दुःख के रूप हैं - जन्म, मृत्यु, जरा और रोग। इनका कारण है कर्म । कर्मबन्धन का मूल हेतु है आसक्ति | इसलिए आसक्ति त्याग पर ही पूरा बल दिया गया है।
वृत्तिकार ने 'धुत' की परिभाषा की है - "धुतं अष्टप्रकार कर्म धुनने, ज्ञाति परित्यागो वा । " -जिसने तप एवं संयम द्वारा आठ प्रकार के कर्मों को झाड़ने, धुनने का प्रयास प्रारंभ कर दिया है तथा जाति, परिवार का त्याग कर दिया है वह है धुत ! चूर्णिकार का कथन है- " धुनन्ति जेण कम्वा तं तं भणितं । " - जिसने तप के द्वारा कर्मों को प्रकम्पित कर दिया है वह धुत है । इस सूत्र में धुत बनने का क्रम बताया है - " इह खलु अत्तत्ताए । ' - प्राणी अपने कृत कर्मों के कारण विविध कुलों में जन्म लेता है। जन्म से धुत बनने तक की छह अवस्थाओं का वर्णन इस सूत्र में धुत बनने की यात्रा के रूप में किया गया है वे छह सोपान इस प्रकार हैं
अपने किये हुए कर्मों के अनुसार जीव जब मानव कुल में आता है तो सर्वप्रथम सात दिन तक कलल ( पिता के शुक्र और माता के रज) के अभिषेक के रूप में बने रहता है। इसे अभिसम्भूत कहते हैं।
धुत: छठा अध्ययन
Jain Education International
( ३१७
For Private & Personal Use Only
Dhut: Sixth Chapter
www.jainelibrary.org