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विवेचन-अव्यक्त अगीतार्थ साधु को एकाकी विचरण का निषेध करते हुए वृत्तिकार ने अव्यक्त के दो प्रकार बताये हैं - (१) श्रुत (ज्ञान) से अव्यक्त, . और (२) वय (अवस्था) से अव्यक्त |
जिस साधु ने ‘आचारप्रकल्प' (निशीथ सूत्र ) का अर्थ सहित अध्ययन नहीं किया है, वह श्रुत से अव्यक्त है। जो सोलह वर्ष की उम्र से कम हो वह वय से अव्यक्त है।
इस सूत्र की चतुर्भंगी इस प्रकार है
(१) कुछ साधक श्रुत और वय दोनों से अव्यक्त होते हैं।
(२) कुछ साधक श्रुत से अव्यक्त, किन्तु वय से व्यक्त होते हैं।
(३) कुछ साधक श्रुत से व्यक्त किन्तु वय से अव्यक्त होते हैं।
उक्त तीनों भंग एकाकी विहार के योग्य नहीं हैं ।
(४) कुछ साधक श्रुत और वय दोनों से व्यक्त होते हैं। वे भी प्रयोजन होने पर प्रतिमा स्वीकार करके एकाकी विहार कर सकते हैं, किन्तु विशेष कारण के बिना उनके लिए भी एकाकी चर्या की अनुमति नहीं है। एकाकी विचरण में अनेक दोषों की सम्भावना रहती है। अकस्मात् अतिसार या वायु कुपित होने से कोई व्याधि हो जाय तो संयम और आत्मा की विराधना होने की सम्भावना है, प्रवचन हीलना, संघ की बदनामी भी हो सकती है।
वृत्तिकार आचार्य बताते हैं अव्यक्त साधक के एकाकी विचरण में अनेक दोषों की संभावना रहती है। किसी व्यक्ति ने उसे छेड़ दिया या अपशब्द कह दिया तो उसके साथ भी गाली-गलौज या मारपीट करने को उद्यत हो जाने की सम्भावना है। गाँव में कुलटा स्त्रियों के मायाजाल में फँस जाने का खतरा है। कुत्तों आदि के भी उपसर्ग सम्भव हैं। धर्म-विद्वेषियों द्वारा उसे बहकाकर धर्मभ्रष्ट किये जाने की भी सम्भावना रहती है। जैसा कि कहा है
"अक्कोस-हरण - मारण-धम्मब्भंसाण बालसुलभाणं । लाभं मण्णइ धीरो जहुत्तरण अभावमि ॥”
अव्यक्त साधु अनुभव में और संयम - आचार के अभ्यास में कच्चा होने से प्रतिकूल प्रसंग आने पर स्थिर नहीं रह सकता। क्योंकि बाधाओं व उपसर्गों को सहन करने की क्षमता और कला विनय तथा विवेक से आती है। 'बाधाओं को सहन करने से क्या लाभ है ?" इस पर विचार करने के लिए ज्ञान की अपेक्षा रहती है। अव्यक्त साधु में क्रोध तथा क्षमा के दूरगामी परिणाम को देखने की क्षमता नहीं होती । अतः उसे अज्ञानी व अद्रष्टा कहा है।
_स्थानांगसूत्र (८/५९४) में बताया है - एकाकी विचरने वाले साधु में निम्न आठ गुण होने चाहिए
(१) दृढ़ श्रद्धावान, (२) सत्पुरुषार्थी, (३) मेधावी, (४) बहुश्रुत, (५) शक्तिमान्, (६) अल्प उपधि वाला, (७) धृतिमान, तथा (८) वीर्य-सम्पन्न |
आचारांग सूत्र
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Illustrated Acharanga Sutra
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