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विवेचन-इस सूत्र के अनुसार जो पंचेन्द्रिय-विषयों के स्वरूप का ज्ञाता तथा उनका त्यागी है, वही मुनि एवं निर्ग्रन्थ होता है। ___ अभिसमन्वागत का अर्थ है-विषयों के इष्ट-अनिष्ट, मनोज्ञ-अमनोज्ञ स्वरूप का ज्ञाता तथा उनके उपभोग से होने वाले दुष्परिणामों को भी भलीभाँति जानकर जो उनका त्याग करता हो।
शब्दादि विषयों का परित्याग करके आत्मा की रक्षा करने वाला आत्मवान् कहा जाता है। ज्ञानवान् वह है जो जीवादि पदार्थों का यथावस्थित ज्ञाता हो।
जीवादि का स्वरूप जिनसे जाना जा सके, उन वेदों-आचारांग आदि आगमों का जो ज्ञाता है " अर्थात् आगम में प्रतिपादित राग-द्वेष-मुक्ति मार्ग को जानने वाला वेदवान् है।
वह धर्मवान् है, जैसा कि टीका में कहा है-धर्म चेतनाऽचेतनद्रव्य स्वभावं श्रुत-चारित्ररूपं वा वेत्ती ति धर्मवित् जो श्रुत-चारित्ररूप धर्म का अथवा साधना की दृष्टि से आत्मा के स्वभाव (धर्म) का ज्ञाता हो।
अठारह प्रकार के ब्रह्मचर्य से सम्पन्न आत्मा को ब्रह्मवान् कहा है। ब्रह्मचर्य के अठारह भेद ये हैं
"दिवा-कामरइसुहा तिविहं तिविहेण नवविहा विरई।
ओरालिया उ वि तहा तं बंभं अट्ठदसभेयं॥" ___अर्थात् देव-सम्बन्धी भोगों का मन, वचन और काया से सेवन न करना, दूसरों से न कराना तथा करते हुए को भला न जानना, इस प्रकार नौ भेद हो जाते हैं। औदारिक अर्थात् मनुष्य एवं तिर्यञ्च सम्बन्धी भोगों के लिए भी इसी प्रकार नौ भेद हैं। कुल मिलाकर अठारह भेद हो जाते हैं। ___इस सूत्र का अभिप्राय यह है कि जो पुरुष शब्दादि विषयों को भलीभाँति जान लेता है, उनमें राग-द्वेष नहीं करता, वह आत्मवान्, ज्ञानवान्, वेदवान्, धर्मवान् एवं ब्रह्मवान् होता है। ___ “जो प्रज्ञा से लोक को जानता है, वह मुनि कहलाता है।" इस वाक्य का तात्पर्य है कि जो र साधक मति-श्रुतज्ञान-जनित सद्-असद् विवेकशालिनी बुद्धि से प्राणिलोक या प्राणियों के
आधारभूत लोक को सम्यक् प्रकार से जानता है, वह मुनि है। वृत्तिकार ने मुनि का निर्वचन इस प्रकार किया है-'जो जगत् की त्रिकालावस्था-गतिविधि का मनन करता है, जानता है, वह मुनि है।' 'ज्ञानी' के अर्थ में यहाँ ‘मुनि' शब्द का प्रयोग हुआ है।
पदार्थों का यथार्थ स्वरूप जानने के कारण जिसकी आत्मा सरल हो गई है उसे ऋजू (अंजू) कहा है।
जन्म, जरा, मृत्यु, रोग, शोकादि दुःखरूप संसार को भाव आवर्त-भँवरजाल कहा गया है। इसका उद्गम स्थल है-विषयासक्ति। अतः जो इसे जान लेता है वह आवर्त-स्रोत का ज्ञाता कहलाता है। - आचारांग सूत्र
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Illustrated Acharanga Sutra
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