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८५. थीभि लोए पव्वहिए। ते भो ! वयंति एयाइं आयतणाई। से दुक्खाए मोहाए माराए णरगाए णरग-तिरिक्खाए। सततं मूढे धम्मं णाभि जाणइ। ८५. यह संसार स्त्रियों के द्वारा पराजित है (उनका दास बना हुआ है)। हे पुरुष ! वे (स्त्रियों के दास) कहते हैं-“ये स्त्रियाँ आयतन हैं (भोग की सामग्री हैं)।" ।
(किन्तु उनका) यह कथन दुःख का हेतु है एवं मोह, मृत्यु, नरक तथा नरक से पुनः . तिर्यंचगति (पुनः पुनः जन्म-मरण) का निमित्त बनता है।
निरन्तर मूढ़ रहने वाला मनुष्य धर्म को नहीं जान पाता।
85. This world is overpowered by women (it has become their slave).
Oman ! They (the slaves of women) say—“Woman is the o source of pleasure.”
This concept is cause of grief and is instrumental in his passage through fondness, death, hell and rebirth as animal (repeated cycles of rebirth).
One who is always in stupor cannot know dharma (true path). विषय तृष्णा : महामोह
८६. उदाहु वीरे अप्पमादो महामोहे। ___ अलं कुसलस्स पमाएणं। संति-मरणं संपेहाए, भेउरधम्म संपेहाए।
नालं पास। अलं ते एएहिं। एवं पास मुणी ! महब्भयं। नाइवाएज्ज कंचणं।
८६. भगवान महावीर ने कहा है-“साधक महामोह (स्त्रियाँ तथा विषय की * अभिलाषा) में अप्रमत्त रहे।" ।
कुशल पुरुष को प्रमाद से बचना चाहिए। शान्ति (मोक्ष) और मरण (संसार) को * देखने/समझने वाला तथा शरीर को भंगुरधर्मा-नाशमान है (यह समझने वाला अप्रमाद में * रहता है)। लोक-विजय : द्वितीय अध्ययन
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Lok Vijaya : Second Chapter
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