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________________ PRESERVED AT ANHILWAD PATAN. 11 जेण जयसिंहदेवो राया भणिऊण सयलदेसम्मि॥ काराविउ अमारिं पज्जोसवणाइसु तिहीसु ॥ १०० ॥ ९०० ।। पुहईराएण सयंभरीनरिंदेण जस्स लेहेण ॥ रणखंभउरजिणहरे चडाविया कणयकलसा ॥१॥ जेण कुणंतेण तवं चउत्थछटुं च उभयकाले वि। सद्धम्मदेसणा भवियणस्स न कयावि परिचत्ता ॥२॥ सावयलोउ कल्लाणएसु अट्टाहियासु सविसेसं ॥ गामेसु य नयरेसु य बहू पयट्टाविउ जेण ॥ ३ ॥ नियनाणेण केणइ तह वेमाणियसुरोवएसेण ॥ परालयागमणसमयं निययं नाऊण असन्नं ॥ ७ ॥ नीरोगम्मि वि देहे कमेण काऊण कवलपरिहारं ॥ खविऊण सुहं सयलं जेण पवन्नो अभत्तट्टो ॥ ८॥ जस्मुत्तिमहगहणं सोऊणं गरुयखेयभरियमणा। परतित्थिया वि पइदिणमुवोंत पासे सयलनयणा ॥९॥ गुजरनरिंदनयरे सो कोवि न अस्थि रायपभिइजणे ॥ अपेसणवियाण जो तेसिमागउ नेयणसम्मि ॥१०॥ सिरिसालिभद्दसूरिप्पमुहोहँ गभय गभय सूरीहिं। जस्स समीवे गंतु ण सूरियं बहु ससोएहि ॥ ११ ॥ मासम्मि भद्दवपट्टे तेरसम्मि उववासे ॥ सोहियवसा य वरभवणमज्झउ नीहरेऊण ॥ १२॥ पाययलोह लीलाए डंडहत्थेहि अखलियगईहि ॥ कस्सवि अन्नस्स करे अविलगुंतोह सयमेव ॥ १३ ॥ नरनाहमाणणिज्जे निवनयरनिवासिनेगमगणाण ॥ सव्वेसिपि पहाणो सगिहठिउ सीयउसेट्री ॥ १४ ॥
SR No.007582
Book TitleOperation In Search of Sanskrit Manuscripts in Mumbai Circle 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorP Piterson
PublisherRoyal Asiatic Society
Publication Year1896
Total Pages420
LanguageEnglish
ClassificationBook_English & Catalogue
File Size88 MB
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