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PRESERVED AT ANHILWAD PATAN.
निवाणथगिरिसिरतिरोहिए दिणयरम्मि व जिणिदे ।। पुव्वमुणिमयंकमहे लोगंतरपट्टिए संते ॥ ७९ ।। कलिकालनिसापसरियपमायबलंघयारपडलेण ।। संजममग्गे पच्छाइयम्मि पाएण इह भरहे ।। ८० ॥ जेण तवनियमसंजमसमुग्गएणं महानिरीहेण ॥ विप्फुरियं विमलमणिप्पइवकप्पेण - - त्तो ॥ ७८ ॥ तह कहवि अणुटाणं मुक्कसायं अणुट्टियं जेण परपक्खसपक्खेसु वि मणंपि जह होइ न विरोहो ॥ ७९ ।। एगो य चोलपट्टो तह पच्छायणपडी वि एका य ॥ नियपरिभोगे जस्सासि सव्वया अइनिरीहस्स ॥ ८० ॥ दहे वत्थे सुयसा वि जस्स मलनिवहमुव्वहंतस्स ॥ अभितरकम्ममलो सब्भयभीउ व्व नीहरइ ॥ ८१ ॥ घयविगई मोत्तूणं पञ्चक्खायाउ सेसविगईउ ।। सव्वाउ जेण जावजीवं रसगिद्धिरहिएण ॥ २ ॥ निज्झरणकए कम्माण जेण दिणतइयजामसमयम्मि ॥ गिटे भिक्खा भमिया पढमगुणटाणियगिहेसु ॥ ८३ ॥ भिक्खाविणिग्गयं जं सोऊणं सावया नियनियनिएएस ।। होति गिहेसु च उत्ता भिक्खादाणाहिलासेण ॥ ८४ ॥ जं नियागहम्मिपयडागयमत्ता छउमदिट्रिया वि नरा ॥ आमणसेट्रिपमुहा पडिलाभंति य सहत्थेण ।। ८६ ॥ गामे वा नगरे वा सो कत्थइ जत्थ संठिउ जाव ।। ताव तमवंदिऊण न तत्थ पाए जणो भुत्तो ॥ ८६ ॥ सिरिवीर एव भणउ ठकुरसिरिजज्जउ सिरिजयपसिद्धो । गाउयपंचममज्झे अवंदिउं जं न भुजंतो ॥ ८७ ॥
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