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EXTRACTS FROM MANUSCRIPTS
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इय सिरिमुणिसुव्वयजिणिदचरिए सिरिसिरिचंदसूरिविरइए नवम भवग्गहणं सम्मत्तं ॥ मुणिसुव्वयमोक्खाउ गएहि छहिं वाससयसहस्सेहिं । नमिनाहो उप्पन्नो पंचहि लक्खेहितो नेमी ॥ ६९॥ नेमिजिणाउ पासो उप्पन्नो इय गएहिं वासाणं । तेसीए सहस्सोहं सए अटुटुमेहिं च ॥ ७० ॥ .. अट्टाइ जस्सएहिं गएहिं वासाण पासनाहाउ। उप्पन्नो वीरजिणो जस्स विवट्टए तित्थं ॥ ७१ ॥ तस्स अपच्छिमतित्थाहिवस्स तित्थे पयट्टमाणम्मि। सिरिपन्हवाहणकुले गच्छे हरिसउ परतवग्मि ॥ ७२ ॥ सिरिजयसिंहो सूरी सयंभरीमंडलाम्म सुपसिद्धो।। पंचविहायारसमायरणउ एउ गुणणिही जाउ ॥ ७३ ॥ . ताण विणेउ गुणरयणसायरो अभयदेवसूरित्ति। उवसमपहाणयाए जेण सुगराण वि मणो हरियं ॥ ७४ ॥ सुरगुरुसरिसमइविहु जस्स समग्गेवि गुणगणे गहिउ । नेय समत्थो किं पुण ते थोतुमहं खमो जिह्मो ॥ ७९ ॥ असरिसगुणाण राएण परवसीहूयमाणसो तहवि ॥ शिलाली तेसिं गुणमाहप्पं मणंपि कित्तेमि सत्तीए ॥ ७६ ॥ गरुयगुणे अणुसरणं कुणमाणो पासिऊण व एवन्नं ॥ तुंगत्तूणं सरीरेण जस्स अञ्चब्भुयं भुवणे ॥ ७७ ॥ रूवेण निजिउ व्व मयरद्धउ महासुहडो ॥ नियडो न कयाइ वि जस्स संढिओ वि टिमविमुक्को ॥ ७८ ॥