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________________ -OM - [१] तर दर्शनोंके सिद्धान्त तथा प्रक्रिया जो योगमार्गके लिये सर्वथा उपयोगी जान पड़ी उसका भी अपने योगशास्त्रमें बड़ी उदारतासे संग्रह किया। यद्यपिबौद्ध विद्वान् नागार्जुनके विज्ञानवाद तथा आत्मपरिणामित्ववादको युक्तिहीन समझ कर या योगमार्गमें अनुपयोगी समझ कर उसका निरसन चौथे, पादमें किया है, तथापि उन्होंने बुद्धभगवान्के परमप्रिय चार आर्यसत्योंका हेय, हेयहेतु, हान और होनोपाय रूपसे स्वीकार नि:संकोच भावसे अपने योगशास्त्रमें किया है। धारण कर सकता है। विद्याधरसे यह भी सुना कि वह जडी अमुक वृक्षके नीचे है, पर उस वृक्षके नीचे अनेक प्रकारकी, बनस्पति होनेके कारण वह खी संजीवनीको पहचाननेमें असमर्थ थी। इससे उस दुःखित स्त्रीने अपने बैलरूपधारि पतिको सब वनस्पतियाँ चरा दी । जिनमें संजीवनीको भी वह बैल घर गया, और बैलरूप छोड कर फिर मनुष्य बन गया। जैसे विशेष परीक्षा न होनेके कारण उस स्त्रीने सब वनस्पतियोंके साथ संजीवनी खिला कर अपने पतिका कृत्रिम बैलरूप छुडाया, और असली मनुष्यत्वको प्राप्त कराया, वैसे ही विशेष परीक्षाविकल प्रथमाधिकारी भी सब देवोंकी समभावसे उपामना करते करते योगमार्ग में विकास करके इष्ट लाभ कर सकता है। १ देखो सू० १५, १८।। २ दुःख, समुदय, निरोध और मार्ग ।
SR No.007442
Book TitleYogdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlal Sanghavi
Publication Year
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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