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वैशेषिक, नैयायिक आदिकी ईश्वरविषयक मान्यताका तथा साधारण लोगोंकी ईश्वरविषयक श्रद्धाका योगमार्ग में उपयोग करके ही पतञ्जलि चुप न रहे, पर उन्होंने वैदिके
लानेका उदार प्रयत्न किया है । इस प्रयत्नका अनुकरण श्रीयशोविजयजीने भी अपनी " पूर्वसेवाद्वात्रिंशिका " " आठदृष्टियोंकी सम्झाय " आदि प्रन्थों में किया है । एकदेशीयसम्प्रडायाभिनिवेशी लोगोंको समजानेके लिये ' चारिसंजीवनीचार ' न्यायका उपयोग उक्त दोनों आचायोंने किया है । यह न्याय बडा मनोरञ्जक और शिक्षाप्रद है ।
इस समभावसूचक दृष्टान्तका उपनय श्रीज्ञानविमलने आठदृष्टिकी सज्झाय पर किये हुए अपने गूजराती टवेमें बहुत अच्छी तरह घटाया है, जो देखने योग्य है । इसका भाव संक्षेपमें इस प्रकार है । कीसी स्त्रीने अपनी सखीसे कहा कि I मेरा पति मेरे अधीन न होनेसे मुझे बडा कष्ट है, यह सुन कर उस आगन्तुक सखीने कोई जडी खिला कर उस पुरुषको बैल बना दिया, और वह अपने स्थानको चली गई । पतिके बैल बनजानेसे उसकी पत्नी दुःखित हुई, पर फिर वह पुरुषरूप बनाने का उपाय न जाननेके कारण उस बैलरूप पतिको चराया करती थी, और उसकी सेवा किया करती थी । कीसी समय अचानक एक विद्याधरके मुखसे ऐसा सुना कि अगर बैलरूप पुरुषको संजीवनी नांमक जडी चराई जाय तो वह फिर असली रूप