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[४२ योगशास्त्रका विषय-विभाग उसके अन्तिमसाध्यानुसार ही है । उसमें गौण मुख्य रूपसे अनेक सिद्धान्त प्रतिपादित हैं, पर उन सबका संक्षेपमें वर्गीकरण किया जाय तो उसके चार विभाग हो जाते हैं। १ हेय २ हेय-हेतु ३ हान ४ हानोपाय । यह वर्गीकरण स्वयं सूत्रकार किया है। और इसीसे भाष्यकारने योगशास्त्रको चतुर्वृहात्माक कहा है । सांख्यसूत्रमें भी यही वर्गीकरण है । बुद्ध भगावान्ने इसी चतुर्ग्रहको आर्य-सत्य नामसे प्रसिद्ध किया है। और योगशास्त्रके आठ योगाङ्गोंकी तरह उन्होंने चौथे आर्य-सत्यके साधनरूपसे आर्य अष्टांङ्गमार्गका उपदेश किया है । दुःख हेय है, अवियों हेयका कारण है, दुःखका
१ यथा चिकित्साशास्त्रं चतुर्म्यहम्--रोगो रोगहेतुरारोग्यं भैषज्यमिति, एवमिदमपि शास्त्रं चतुर्दूहमेवे । तद्यथा-संसारः संसारहेतुर्मोक्षो मोक्षोपाय इति । तत्र दुःखबहुलः संसारो हेयः । प्रधानपुरुषयोः संयोगो हेयहेतुः। संयोगस्यात्यन्तिको निवृत्तिहनिम् । हानोपायः सम्यग्दर्शनम् । पा० २ सा० १५ भाष्य ।
२ सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्या वाचा, सम्यक् कर्मान्त, सम्यक् आजीव, सम्यक् व्यायाम, साम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि । बुद्धलीलासार संग्रह. पृ. १५० । ३" दुःखं हेयमनागतम् ” २-१६ यो. सू । ४ " द्रष्टादृश्ययोः संयोगो हेयहेतुः २-१७ ॥ " तस्य हेतुरविद्या"२-२४)