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[४१] व्यासकृत भाष्य और वाचस्पतिकृत टीकासे उसकी उपादेयता बहुत बढ़ गई है। ___ सब दर्शनोंके अन्तिम साध्यके सम्बन्धमें विचार किया जाय तो उसके दो पक्ष दृष्टिगोचर होते हैं। प्रथम पक्षका अन्तिम साध्य शाश्वत सुख नहीं है। उसका मानना है कि मुक्तिमें शाश्वत सुख नामक कोई स्वतन्त्र वस्तु नहीं है, उसमें जो कुछ है वह दुःखकी आत्यन्तिक निवृत्ति ही। दूसरा पक्ष शाश्वतिक सुखलाभको ही मोक्ष कहता है । ऐसा मोक्ष हो जानेपर दुःखकी प्रात्यन्तिक निवृत्ति आप ही आप हो जाती है। वैशोषिक, नैयायिक, सांख्य, योग और बौद्धदर्शन प्रथम पक्षके अनुगामी हैं । वेदान्त और जैनदर्शन, दूसरे पक्षके अनुगामी हैं।
१॥ तदत्यन्त विमोक्षोऽपवर्गः " न्यायदर्शन १-१-२२ । २ ईश्वरकृष्णकारिका १। ३ उसमें हानतत्व मान कर दुःखके आत्यन्तिक नाशको ही हान कहा है। ४ बुद्ध भगवानके तीसरे निरोध नामक आर्यसत्यका मतलब दु:ख नाशसे है । ५ वेदान्त दर्शनमें ब्रह्मको सच्चिदानंदस्वरूप माना है, इसीलिये उसमें नित्यसुखकी अभिव्यक्तिका नाम ही मोक्ष है । ६ जैन दर्शनमें भी आत्माको सुखस्वरूप माना है, इसलिये मोक्षमें स्वाभाविक सुखकी अभिव्यक्ति ही उस दर्शनको मान्य है।
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