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________________ [१३६] रूपी ये दो प्रकार हैं । इन्द्रियगम्य वस्तुको रूपी (स्थूल ) और इन्द्रिय-अगम्य वस्तुको अरूपी (सूक्ष्म ) कहते हैं। स्थूल आलम्बनका ध्यान सालम्बन योग और सूक्ष्म बालम्बनका ध्यान निरालम्बन योग है, अर्थात् विषयकी अपेक्षासे दोनों ध्यानमें फर्क यह है कि पहलेका विषय आँखोंसे देखा जा सकता है और दूसरेका नहीं । यद्यपि दोनों ध्यानके अधिकारी छमस्थ ही होते हैं, परन्तु पहलेकी अपेक्षा दसरेका अधिकारी उच्च भूमिकावाला होता है। अर्थात् पहले ध्यानके अधिकारी अधिकसे अधिक छठे गुणस्थान तकके ही स्वामी होते हैं परन्तु दूसरे ध्यानके अधिकारी सातवें गुणस्थानसे लेकर बारहवें गुणस्थानतकके स्वामी होते हैं। ____ आसनारूढ वीतराग प्रभुका या उनकी मूर्ति आदिका जो ध्यान किया जाता है वह सालम्बन और परमात्माके ज्ञान आदि शुद्ध गुणोंका या संसारीश्रात्माके औपाधिक रूपको छोड कर उसके स्वाभाविक रूपका परमात्माके साथ तूलना पूर्वक ध्यान करना निरालम्बन ध्यान है अर्थात निरालम्बन ध्यान आत्माके तात्त्विक स्वरूपको देखनेकी निःसंग और अखंड लालसारूप है । ऐसी लालसा क्षपकश्रेणी सम्बन्धी दूसरे अपूर्वकरणके समय पाये जानेवाले धर्मसंन्यासरूप सामययोगसे होती है। __हरिभद्रसरिने षोडशकमें वाणमोचनके एक रूपकके द्वारा अनालंवन ध्यानका स्वरूप समझाया है सो इस प्र
SR No.007442
Book TitleYogdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlal Sanghavi
Publication Year
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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