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उ टोका
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2 भागगमभहियाउकोसाहोइठिई नायचाते उलेसाए ३७ तेजो लेश्यायाच इयं स्थिति तिव्याजघनगा तु अन्तर्मू इत उत्कष्टाचतेजो लेश्याया हौ उद धौद्दे सागरोपमेपल्योपमासंख्ये यभागाधिके परमास्थिति तव्या इयं तु ईशानदेवलोकापेक्षयाप्रोक्तास्ति ३७ [मुहुत्तइंतु जहबादसउदहीहीन्ति मुडुत्त मश्चहिया उकासाहोइठिई नायब्वापरलेसाए ३८] पद्मलेण्यायाइयं स्थितिर्जातव्या जघनया तु अन्तम इत्त एव स्थिति बति उत्तष्टा तु दशसागरोप मानि अन्तर्मुहाधिकानि परमास्थितिरतावतोपद्मलेश्यायाभवति इयं ब्रह्म देवलोकापेक्षयाउक्तास्ति १८ मुडुत्तई तु जइब्रातित्तौसंसागरामुहुत्तहिया उक्कोसाहोठिई नायबासुकलेसाए ३८] शक्ललेश्यायाइयं स्थिति तय्या जघन्यास्थितिरन्तद्हतं शक्ललेश्यायास्त्रयस्त्रिंशत्मागरोपमानि मुहाधिकानि
मम्महिया। उक्कासा होइ ठिई नायव्वा काउ लसाए ३६॥ मुहुत्तह'तुजहन्ना टुन्नदही पलिय मसंखभाग मम्भहिया। उक्कासा हो ठिई नायव्वा तेउ लेसाए ३७॥ मुहुवतु जहन्ना दस उदही हुति मुहुत्त मम्महिया। उक्कोसा होडू ठिई नायब्वा पम्ह लेसाए ३८ ॥ मुहुत्तवतु जहन्ना तित्तौसं सागरा महत्तहिया। उक्कासा होइ ठिई नायब्बा मुक्क
राय धनपतसिंह बाहादुर का आ.सं.उ. ४१मा भाग
भाषा
जघन्य थिति तीन सागरोपम पल्योपमने असंख्यातम भागि अधिक ईशाब देवलोकनी अपेक्षाये अत्कष्टौ थिति हुइ तेजाणवी कापोत लेस्यानी ३६ कृ अंतर्मुइत जवन्ध थिति वे सागरोपमने असंख्यातमे भागे अधिक ईशान देव लोकनी अपेक्षाई उत्कृष्टौ थिति हुई तेजाणवी तेजी लेस्थानौ ३०
अंतर्मूइत जघन्यथिति दस सागरोपमहोइ अतहतं अधिक पांचमा देवलोकनी अपचाइ उत्कृष्टी थिति हइ तेजाणवी पद्मले ध्यानी ३८ अंतमूहुर्त जघन्य थिति तेत्रीस सागरोपम मुहुर्ते अधिक सर्वार्थ सौइनि अपेक्षा उत्तष्टी थिति हुइ ते जाणवी शक्ल ले श्यानी ३८ एह खलु