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________________ 208 2 [मुदुत्त तु जहबातित्तीसंसागरामहत्तहिया कोसाहीइठिई नायब्वाकिम्हले साए ३४] कृष्णलेश्यायाइति स्थिति तथा जघनामुहर्ताई कश्चिदं * शैयन घटिकादयं अन्तम इत एव कृष्णलेण्यायास्थितिर्भवति तथा उत्कृष्टास्थिति स्त्रयसियसागरीपमाणि मुहर्ताधिकानि अथ सम्प्रदायात् महत्तं शब्देन अन्तम हत रहते त्रयस्त्रिं यमागरीपमाणि अन्तमू हाधिकानि परमास्थि तिः कपालेश्यायाभवन्ति ३४ (महत्तई त जहबादसउदही पलियमसंखभागमभहिया उकोसाहीइठिई नायबानीललेसाए ३५] नौललेण्यायाः जघनास्ताककाल' चेत् स्थिति भवति तदा अन्तमहत एव उत्कष्टास्थितिवदयसागरीपमानि पस्योपमासंख्येयभागाधिकानि नौलायास्थितिर्भवतीति जघनपाउत्कष्टास्थि तिर्ज्ञातव्या इयं स्थितिय पञ्चम पृथिव्याः धूमप्रभाया उपरितन प्रस्तटमाथित्योक्ता ३५ (मुहत्तसन्तुजहवातिबुदहीपलियमसंखभागमभहिया उकोसाहीइठिई नायव्याकाउलेसाए २४) कापोत लेण्यायाः इयं स्थिति तिव्या जघनयास्थिति स्तुकापोतलेण्यायाः अन्त महत भवति तथा पुनः कापीतलेश्यायाः त्रीणिसागरोपमाणि पल्योपमासंख्येय भागाधिकानात् कष्टास्थि तिर्भवतीति सातव्याइति तोयनरकपृथिव्यावालुकाया अपेचयाउक्तास्ति २५ [ महत्तवन्तु जहवादोउदही पलियमसंख तित्तीसं सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा ही ठिई नायव्वा किन्ह लेसाए ३४ ॥ मुहुत्तदंतु जहन्ना दस उदही पलीय मसंखभागमम्महिया। उक्कोसा होइ ठिई नायब्वा नोललेसाए ३५॥ मुहुत्त'तु जहन्नातिन्दुदही पलिय मसंखभाग अंतर्मुहुर्त वे घडी माठेरी जघन्य विति तेवोस सागरोपम अंत मुइत अधिको मुहर्त नोएकदेश लौजे उत्कष्टौ थिति हुई तेजाणवी कृष्ण लेस्थानौ ३४ अंतमूहर्त जघन्य थिति दस सागरोपम अने पत्योपमने असंख्यातमै भाग उत्कृष्टौ विति हुई ते जाणवौ नौललेस्थानी ३५ अंतमूहर्त सयधूनपतसिंह वाहादुर का श्रा० सं० उ. ४१मा भाग
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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