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________________ ए० टोका ०३२ ८-५२ सूत्र भाषा कालेयदुहौदुरन्ते एवं अदत्ताणि समाययन्तो फासे अतित्तोदुहिश्र अणिस्मो ८३] माया मृषाभाषी पुमान् मृषा वाक्यस्य पश्चात्पुरतश्च पुनः प्रयोग काले भाषण प्रस्तावदुरन्तोऽत्यन्त दुःखौभवति एवं अमुनाप्रकारण अदत्तानि समाचरन् स्पर्शेऽसृप्तः सन् दुक्खोभर्वात परं कीदृशः श्रनिश्रोनियारहितः ८३ (फासाग्रत्तमनर एवं क तो सुहं होज्जक याइकिश्चितत्थोव भोगे विकि लेस दुक्ख निब्बत्तईजस्तक एणदुक्ख ८४) एवं अमुनाप्रकारण स्पर्शानुरक्तस्य कदापि कि चिदपि कुतः सुख'भवेत् अपितु नभवेत् तत्र स्पर्धं उपभोगेपि क्रेम दुक्ख यस्य स्पर्यस्यकृते उपभोगार्थ आत्मनोदुक्ख निर्वर्त्तयति ४ ( एमेव फासंमिश्र पश्रीसं उबेद्रदुक्खोहपरं पराश्री पदट्ठचित्तोयचिणाइकम्मं जंसेपुणो होद्र दुहविवारी ८५) एवं एव यथा स्पर्धेरागवान् दुःखोषपरं परयाप्रदुष्टचित्तः सन् दुक्खानविमुञ्चई से ८२ । मासस्य पच्छाय पुरत्यय पद्योग काले य दुही दुरंते । एवं दत्ताणि समाययंता फार्स अतित्तो दुहिओ अणिमो ८३ । फासागरत्तस्मनरा एवं कनो मुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोव भाग वि किलेस दुक्खं निव्वत्तई जमकरण दुक्खं ८४ | एमेव फासंमि गओ पश्चसं उवेद दुक्खोह परंपराओ । पदट्ठ चित्तोय चिणाइ नही ८२ फरसने लोभी झूठो बोले पहिलो दुःख लह प्रयोग काले झठा बोलवाने अवसरने बिखे दुक्खौ थको अंत विडंबना जिम झूठो लागे तिम प्रदत्त अणदौधे एतले फरसने बिखे असंतोषी दुःखि उधाइ निश्रारहित ८२ फरने बोखे रागौने नरमनुष्यने इमको हाथो सुखवाद्र' किवारे पणि तौहा फरसने बिखे तृप्त न होइ तालगे क्लेश दुक्ख पाने नौप जावे करे ते फरस भोग विवाने बिखे कष्ट अनेक उपाय ८४ इम फरसने बिखे द्वेष पाम्यो थको पामे ते जीव दःखनौ परंपरा प्रहषें चित्तसहित थको बांध कर्मघणां जेह कर्म दक्खनां कारणहुइ विपाक भोग ***************************** रामधनपतसिंह वाहादुर का पा०सं० उ० ४१मा भाग
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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