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________________ ९ AN अपराध्यति तस्य स्पर्शनेन्द्रियस्यैव दोषः ७७ (एगन्तरत्तोरु इरंमिफामे अयालिसे सेकुणईपीस दुक्लस्म सम्पौलमुवेइबाले नलिप्पई तेणमुणीविराग७८)* सटौका योमनुष्योरुचिरे स्पर्शएकान्तरक्को भवति स अतालिसे असुन्दरै स्पर्थे प्रवेपं करोति स च बालोऽज्ञानौदुक्खस्य सम्पीडां उपैति तेन कारणेन विरागीमुनि ०३२ ८५० लिप्यते ७८ [फासाणुगासाणगएयजौवे चराचरैहिसणे गरूवै चित्त हिं ते परितावेइबाले पीलेइ अत्तगुरुकिलिट्ठ ७८] स्पर्शामुगासाबुगतीजीव: स्वाभिलाषसहिती जोवी बाल निर्षि वेकोचिरनक रुपैरुपायैः शस्त्र : क्त्वा अनेकरूपान् नमान् स्थावरान् जीवान् हिनस्ति पौडयति कीदृशः स - अत्तगुरुः स्वार्थपरायणः पुनः कीदृशः क्लिष्टोरागाद्य पहतचित्त: ७८ (फासाणु बाएण परिगहेण उप्यायण रक्तख सनिअोगेवएविप्रोगेय कहंमुहंसे एगत रतो रुदूरसि फासे अतालिसेसे कुणई पत्रास । दक्खम्म संपौलमुवेवाले न लिप्पई तेण मुणीविरागो ॥ फासाण गासाणु गएयजीवे चराचरे हिंसडू गोगरूवे । चित्तेहिते परितावेदू वाले पीले अत्तट्ट गुरु किलिट्टे ७६ ॥ फासाणु वाएण परिगहण उप्पायणे रक्षण समिओगे। वए विभागय कह सुहसे संभोग कालेय अतितः नहीं ७७ एकांत घणु रागो फरस भलाने बिखे अति घणु पाडूा फरसने बिखे देष दक्व संश्वधिनी पौडानी समूह घाम अज्ञानी न लोपाइ तिष दक्ष रूपज हष ते करौ साधुनिरागी ७८ मनोहर फर सने कैडे प्रवर्तती प्राणी जीव चराचर वसपने थावरने हणे अनेकजाति विचित्र शस्त्रे करौने दक्व ऊपजावे अज्ञानी आत्माने अर्धे गुरुमोटी किलेश पाम ७८ मनोहर फरसने बिखे राग करी परिग्रहनी मूर्छार * करौ द्रव्य जपजावव करी चौरादिकथौ राखिवे कामने करीवे करो विनाश बिखे विरहने विखे कौहाथी सुखहौवे सहने भोग विवाने कालने XXXXXXXKARNAKAM3034XXXXXX राब धनपतसिंह बाहादुर का प्रा •सं• उ • ४१मा भाग भाषा
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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