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उ० भाषा श्र० १
तिहां थो अणाव्यो तिहां कूकड़े बगुलो करडी तेथे कोणोक एहवं नाम दोधो संसार माहिं माता पिता उपरान्त कुण उपगारी हुसौ यतः चन्द्रचन्दम कर्पूर गोस्तनो शकरादय एतेषां सार मुद्ररत्य जन्मना जनितं मन अनुक्रमे मोटो थयो एहवे इन्द्र महाराज आपण साहमोनी प्रशंसा करी जे भरतस्खेच माहि सम्यक्तधारो राजा श्रेणिक के श्रेणिक सारिखा श्रावक थोड़ा हुसो तेहने क्षायक समक्तसुद्ध के तेहने देवता पिण चलावो न सके एहवु' वचन सांभली अणसहहता देवताइ' साधुनो रूप करो खांधाने विषे जाल धरो राजा श्रेणिक आगलि घई नौकल्यो राजाना सेवक कहे स्वामीचे साधुने वांदो राजा ' साधु जावी वादोने कहे किहीपधारोको देव साधु कहे माक लानो मांस लेवा जांवाका राजा कहे आपणे घरे सर्व मौलसी अर महाराजा तारे दोघे केतलो एक पूरोपडस्य चत्रोजती थया के तेहने मदरा वीना नसरे तुं केतलाने देसी आज वेलानोकल्या ताहरी नीजर चट्या बलता श्रेणिक कहे छे एहवो वचन मबोलो तुमे तुमारी बात करो निःकलङ्की सकलङ्क न हुवे तुंतारा कर्मनु दोष राजानो मन लोगार चुको नजाणी साधवीनो रूपवे श यौवनरूप नौरखने पूरे मासे ने हाट हाट गुल अजमो सूंठ पौपला मूल मांगती देखौ राजाना सुभट कहे जे साधु पूर्व वादी पवित्र या हि साधवो वादो तिवारे राजा ये साधवोने बंदा करो राजा कहे हे पुत्रो आपणे घरे पधारो गरभनो विवाह करस्युं हाट हाट२ क्कुंभमो तिवारे साधवो बोलो केतलानो नोरवाह करसो चन्दनवाला मृगावती प्रमुख स्यं कन्दर्प जीत्यो के ते माहरो कूलदोषराये को एक निर्गुणी सर्व ने सरौखा करे पिण सोवरण स्यामता नहो १ तुमारा कर्मनो दोष राजा लिगार धर्म थी चूको नही साधुसाधवी ऊपरी समभाव निंदा पिए न कीधी देवता मन खुसो थयो प्रत्यक्ष रूप करो रायनो प्रशंसा करे हे महाराज त् धन्य जे कहे माहरे सर्व के प्यारे देवता राजाने वे माटीना गोला देईस्वर्ग पहुता एक गोलो सुनन्दाने दौधी ते मांहि कुंडल युगल नोकल्या तिवारे देवता कहण लागो एसर्व रूपमे करा साधु साधवी तोनीकल के मोचना साधक के
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राय धनपतसिंह बाहादुर का आ० सं० उ० ४९ मा भाग