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________________ करता भव्य जीवने धर्म-संभलावता एकदा प्रस्ताव पर्थ जाता पहाड आयो तिवारे अवसर देखौने चेलो भाग धयो तिहा थो जतरता गुरूने विणास वाने अर्थे चेले सिलामूको गुरूजाणो पग पसारा सिला हैठे वहिगइ नहो तो गुरु विणास पामता तिवारी गुरु चिंतव्यो एचेला धौ अकाल मरणउपज स्ये अने संयमनी विराधना धास्य हिवडा वोली बीये नही एहवो विचारी हेठा उतरीया आचार्ये सर्व शिष्य तेद्या तेवात कसिथनी कही शिष्य सम झाविवा लागा पिण ते मुर्ख माहमु बोले यतः लहु डवड़ा माने नहीं न गिणे सयण सनेह आपण छदे चालता घणा विगूबे तेही तिवारे गुरुई सराप दौधो रे दुरामा स्त्री थौ विनाथ पामि ज्ये एहवो कही गुरे गच्छथौ वाहिर काव्यो तिवारी चेली कहे जाणिये के मोच सिद्यालयतम पासि के गुरु कहे तिमज गुरुनी वचन विहां सिद्ध के तिहा धको ते चेलो गुरुना वचन उथापवा भणौते चेलो तापसाने आश्रम जडू रयो नदीने तटाताप नाक्ये तेणे मार्गे साथ सहाती पावता जावे तिहा आहार ल्ये वर्षाकाले नदोनो तट तपस्याना प्रभाव थी अनिधि पयो ते भणी लाके कूलवालुअो नाम दौधी एहवे अवसर राजगही नगर श्रेणिक राजा राज्य कर चेलणा राणीप्रमुख ३२ अंते उर अने अभय कुमार मंत्रीसर एकदा प्रस्ताव राणी सोहनी स्वप्न लाधी राजा श्रेणिकने को राजा कहे आपण पुत्रनौ प्राप्ति थासौ राणौ कहे तुमारो बचन प्रमाण थाज्यो स्वप्नपाठकाने पूथ्यो स्वप्न पाठक कहे एचवदे स्वप्न माहि मंडलोकनी माता एक स्वप्न देखे एहवो वचन साभलो विप्राने सौख दोधी राजा राणौने कहे आपण कुलने विष जसवन्त भाग्यवन्त पुत्र हुसौ जयर शब्द वधावी प्राणनाथनी वचनप्रमाण करि महिल पधाराा सुखे समाध गर्भ वधवा लागी अनुक्रमे तौजे मासेडोहलो उपनी जे राजा श्रेणकना काल जानी मास खावु हिवे एहवी मनोरथ पूरण नवाई तिवारे राणी दुखी थई पिण राजा श्रेणक नजाणे एकदा प्रस्तावे सखौर राणोने बोलावी पिण राणो वोलो नहो राणोने चिन्तासमुद्रमे बैठोदिठो तोवारे दासोइज राजा श्रेणिक वोनती करौ हे देव न जाण आजस्यो राय धनपतसिंह बाहादुर का प्रा. सं. २०४१ मा भाग RBRRRRRRRR
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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