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• टीका
भाषा
ऽन्येषा मपौति पड़िणीयञ्च बुद्धाणं वाया अदुव कम्मुणा भावी वा जइ वा रहस्से नेव कुज्जा कया इवि १७ अथ पुनर्विनय शिक्षामाह ॥ च * पुनर्बुद्धानां आचार्याणां प्रत्य नोकं शत्रुभावं वाचा वचनेन क्त्वा न कुर्यात् त्वं किं जानासि इत्यादि रूपेण निर्भर्मनां न कुर्यात् अथवा कर्मणा- क्रिया
संस्तारको लानेन चरणादिना सक्दनेन अविनयं न कर्यात् तदपि आवी इति लोकसमक्षं यदिवारहस्यं एकान्त कदापि सुशिष्यो गुरुभिः सह - बहेहिय ॥१६॥ पड़िणीयंच बुद्धाणं वाया अदुव कम्मुणा। आवीवा जवा रहस्म नेवकुज्जा कयाइवि ॥१७॥ न * कहि वौडो लौधो हाथोने अरथे अनेक पास माद्या कण्टकगत विषमिश्य फलवाणौ त्रिणकोधा पिण ते सर्व विफल नित्य हलविहल उपद्रव कटक ४ माहि कर तिवार तेणेपुरुषेप्रच्छन्न खाई खणावो ते माहि अग्निभरि जपरि सिचत्रणपाथस्या तिणे करी कोई न जाणे एकदिननाल यंत्र राख्या एक दिशि सिह राख्या एक दिसि मनुष्य सौयार रहे एहवे सबकवच हुई हलविहल दोनु भाई सिचानक चढ़ी पूर्ववैर कटकमाहे पाव्या तेण सम हाथी पूरवदिसी
कधी जाणोपगन उपाडे तिवारे अंकुस हाथो ठेले पिण हाथौ न चाले तिवार हल्ल कहे अहो हाथो सिचानक अमने इण वेला तूपिण छ हद्य के तो * कुण भलो थासो एहवो साभलि हाथी चिंतव्यो ए अन्नान थका न जाणे तिवारे वचन संभाव्य अप्पाचेवदर्भअव्वी आपणो आत्मा दमौजे परने दमीये * स्थ घाई अभोमाननावसथो हलविहम भाईने उतारो पोते अग्नि माहे झंप्यो मरोने देवगति पामि हलविहल्ले अतिदुःख कीधी वयरारी महावीरस्वामी
पासे दीक्षा लोधो सुख पाम्या इम आपणो आत्मा दम्या गरज सरे इति सिचानक कथा संपूर्णम् ॥१॥ प०प्रत्यनीक पणी वेरीपणी बु. गुरुनो वा.*
वचने करो गुरुने शिथ इम कहे ते मुझने विपरीत अर्थ कयो अ० अथवा गुरुनो संथारादिक चाप ते कार्ये करौ प्रत्वनीक पणो हुइ प्रगट लोक देखता * ज. जो वा• अथवा र• एकान्त गुरुनो विपरीत पणे मे० नरके क० कठिन बचने करीने सौखामणदेतापिण १७ न० गुरुने समोपे समीपंक्तिन बेसे
राय धनपतसिंह बाहादुर का पा. सा. उ. ४१ मा भान